मेरे पास देने के लिए कुछ नहीं है.
कहते हैं कि आप जैसी भावना मन में लाते हैं या बोलते हैं वैसा करने के लिए सारी कायनात जुट जाती है. जैसा आप चौबीस घंटे सोचते हैं वैसा ही आपके साथ होने भी लगता है. इसलिये कहा गया है कि आपके विचार हमेशा सकारात्मक होना चाहिये.
एक साधु था. वह् गाँव गाँव भ्रमण करता था और एक गाँव में कभी भी एक महीने से ज्यादा नहीं रुकता था. भोजन के लिए वह् गाँव के मात्र पाँच घरों में भि
क्षा के लिए जाता था और जो मिल जाता था उसे खाकर संतुष्ट रहता था. प्रति दिन वह् भिक्षा के लिए घर बदल लेता था और किसी हाल में पाँच घर से ज्यादा नहीं जाता था फिर भिक्षा मिलें या न मिलें.
एक दिन वह् रोज़ की भांति भिक्षा के लिए निकाला. एक घर पर महिला ने भिक्षा न देते हुए साधु को बहुत ही भला बुरा कहा. साधु चुप चाप आगे बड़ गया. यह किस्सा 3-4 दिनों तक चलता रहा. साधु का गाँव छोड़ने का समय आ गया. वह् अन्तिम बार उस महिल के घर भिक्षा माँगने गया. महिला, जो कि साधु से बहुत ही परेशान हो चुकी थी, चिल्ला कर बोली कि उसके पास साधु को देने के लिये कुछ भी नहीं है. इस पर साधु ने कहा कि ,"बहिन तुम एक सम्पन्न परिवार की महिला हो और तुम्हे यह कहना शोभा नहीं देता है कि तुम्हारे पास मुझे देने के लिए कुछ भी नहीं है. हम जो विचार मन में लाते है और बोलते है, कई बार हमारे साथ वैसा ही होने लगता है. अतः तुम्हारा यह कहना कि तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है. ग़लत है." फिर साधु ने जमीन की एक मुट्ठी मिट्ठी उठाई और महिलाको देते हुए कहा , " बहिन ये मिट्ठी तुम्हारे आँगन की है. तुम मुझे यही मिट्ठी भिक्षा में दे दो और आज से भविष्य में कभी भी ये न कहना कि तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है."
कहते हैं कि आप जैसी भावना मन में लाते हैं या बोलते हैं वैसा करने के लिए सारी कायनात जुट जाती है. जैसा आप चौबीस घंटे सोचते हैं वैसा ही आपके साथ होने भी लगता है. इसलिये कहा गया है कि आपके विचार हमेशा सकारात्मक होना चाहिये.
एक साधु था. वह् गाँव गाँव भ्रमण करता था और एक गाँव में कभी भी एक महीने से ज्यादा नहीं रुकता था. भोजन के लिए वह् गाँव के मात्र पाँच घरों में भि
क्षा के लिए जाता था और जो मिल जाता था उसे खाकर संतुष्ट रहता था. प्रति दिन वह् भिक्षा के लिए घर बदल लेता था और किसी हाल में पाँच घर से ज्यादा नहीं जाता था फिर भिक्षा मिलें या न मिलें.
एक दिन वह् रोज़ की भांति भिक्षा के लिए निकाला. एक घर पर महिला ने भिक्षा न देते हुए साधु को बहुत ही भला बुरा कहा. साधु चुप चाप आगे बड़ गया. यह किस्सा 3-4 दिनों तक चलता रहा. साधु का गाँव छोड़ने का समय आ गया. वह् अन्तिम बार उस महिल के घर भिक्षा माँगने गया. महिला, जो कि साधु से बहुत ही परेशान हो चुकी थी, चिल्ला कर बोली कि उसके पास साधु को देने के लिये कुछ भी नहीं है. इस पर साधु ने कहा कि ,"बहिन तुम एक सम्पन्न परिवार की महिला हो और तुम्हे यह कहना शोभा नहीं देता है कि तुम्हारे पास मुझे देने के लिए कुछ भी नहीं है. हम जो विचार मन में लाते है और बोलते है, कई बार हमारे साथ वैसा ही होने लगता है. अतः तुम्हारा यह कहना कि तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है. ग़लत है." फिर साधु ने जमीन की एक मुट्ठी मिट्ठी उठाई और महिलाको देते हुए कहा , " बहिन ये मिट्ठी तुम्हारे आँगन की है. तुम मुझे यही मिट्ठी भिक्षा में दे दो और आज से भविष्य में कभी भी ये न कहना कि तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है."
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