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Wednesday, 23 October 2013
Tuesday, 22 October 2013
करवा चौथ :
करवा चौथ : चन्द्रोदय...रात ,8, बज कर ,58, मिनट पर चंद्रमा का उदय होगा
कार्तिक मास कि चतुर्थी के दिन विवाहित महिलाओं द्वारा करवा चौथ का व्रत किया जाता है। करवा का अर्थात मिट्टी के जल-पात्र कि पूजा कर चंद्रमा को अर्ध्य देने का महत्व हैं। इसीलिए यह व्रत करवा चौथ नाम से जाना जाता हैं। इस दिन पत्नी अपने पति की दीर्घायु के लिये मंगलकामना और स्वयं के अखंड सौभाग्य रहने कि कामना करती हैं।
“जो चंद्रमा में पुरुषरूपी ब्रह्मा कि उपासना करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, उसे जीवन में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता। उसे लंबी और पूर्ण आयु कि प्राप्ति होती हैं।,,
करवा चौथ : पूजन सामग्री की सूची
करवा चौथ एक नारी पर्व है। इस व्रत को सौभाग्यवती महिलाएं करती हैं। इस व्रत में प्रमुखतः गौरी व गणेश का पूजन किया जाता है। जिसमें पूजन सामग्री का भी विशेष ध्यान रखा जाता है।
1. चंदन 2. शहद 3. अगरबत्ती 4. पुष्प 5. कच्चा दूध 6. शक्कर 7. शुद्ध घी
8. दही 9. मिठाई 10. गंगाजल 11. कुंकू 12. अक्षत (चावल) 13. सिंदूर
14. मेहंदी 15. महावर 16. कंघा 17. बिंदी 18. चुनरी 19. चूड़ी 20. बिछुआ
21. मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन 22. दीपक 23. रुई 24. कपूर 25. गेहूं
26. शक्कर का बूरा 27. हल्दी 28. पानी का लोटा
29. गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी
30. लकड़ी का आसन 31. चलनी 32. आठ पूरियों की अठावरी 33. हलुआ
34. दक्षिणा (दान) के लिए पैसे, इत्यादि।
करवा चौथ की पौराणिक व्रत कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।
शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।
सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो।
इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है।
वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।
उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सुईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।
एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सुई ले लो, पिय सुई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।
इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है।सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।
अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्री गणेश-श्री गणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।
हे श्री गणेश- मां गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले..
कार्तिक मास कि चतुर्थी के दिन विवाहित महिलाओं द्वारा करवा चौथ का व्रत किया जाता है। करवा का अर्थात मिट्टी के जल-पात्र कि पूजा कर चंद्रमा को अर्ध्य देने का महत्व हैं। इसीलिए यह व्रत करवा चौथ नाम से जाना जाता हैं। इस दिन पत्नी अपने पति की दीर्घायु के लिये मंगलकामना और स्वयं के अखंड सौभाग्य रहने कि कामना करती हैं।
“जो चंद्रमा में पुरुषरूपी ब्रह्मा कि उपासना करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, उसे जीवन में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता। उसे लंबी और पूर्ण आयु कि प्राप्ति होती हैं।,,
करवा चौथ : पूजन सामग्री की सूची
करवा चौथ एक नारी पर्व है। इस व्रत को सौभाग्यवती महिलाएं करती हैं। इस व्रत में प्रमुखतः गौरी व गणेश का पूजन किया जाता है। जिसमें पूजन सामग्री का भी विशेष ध्यान रखा जाता है।
1. चंदन 2. शहद 3. अगरबत्ती 4. पुष्प 5. कच्चा दूध 6. शक्कर 7. शुद्ध घी
8. दही 9. मिठाई 10. गंगाजल 11. कुंकू 12. अक्षत (चावल) 13. सिंदूर
14. मेहंदी 15. महावर 16. कंघा 17. बिंदी 18. चुनरी 19. चूड़ी 20. बिछुआ
21. मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन 22. दीपक 23. रुई 24. कपूर 25. गेहूं
26. शक्कर का बूरा 27. हल्दी 28. पानी का लोटा
29. गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी
30. लकड़ी का आसन 31. चलनी 32. आठ पूरियों की अठावरी 33. हलुआ
34. दक्षिणा (दान) के लिए पैसे, इत्यादि।
करवा चौथ की पौराणिक व्रत कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।
शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।
सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो।
इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है।
वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।
उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सुईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।
एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सुई ले लो, पिय सुई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।
इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है।सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।
अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्री गणेश-श्री गणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।
हे श्री गणेश- मां गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले..
Monday, 14 October 2013
एक लड़की कार चला रही थी और पास में उसके पिताजी बैठे थे.
राह में एक भयंकर तूफ़ान आया और लड़की ने पिता से पूछा -- अब हम क्या करें?
पिता ने जवाब दिया -- कार चलाते रहो.
तूफ़ान में कार चलाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था और तूफ़ान और भयंकर
होता जा रहा था.
अब मैं क्या करू ? -- लड़की ने पुनः पूछा.
कार चलाते रहो. -- पिता ने पुनः कहा.
थोड़ा आगे जाने पर लड़की ने देखा की राह में कई वाहन तूफ़ान की वजह से रुके हुए थे. उसने फिर अपने पिता से कहा -- मुझे कार रोक देनी चाहिए.
मैं मुश्किल से देख पा रही हूँ. यह भयंकर है और प्रत्येक ने अपना वाहन रोक दिया है. उसके पिता ने फिर निर्देशित किया -- कार रोकना नहीं. बस चलाते रहो.
अब तूफ़ान ने बहुत ही भयंकर रूप धारण कर लिया था किन्तु लड़की ने कार
चलाना नहीं रोका और अचानक ही उसने देखा कि कुछ साफ़ दिखने लगा है. कुछ किलो मीटर आगे जाने के पश्चात लड़की ने देखा कि तूफ़ान थम गया और सूर्य निकल आया.
अब उसके पिता ने कहा -- अब तुम कार रोक सकती हो और बाहर आ सकती हो.
लड़की ने पूछा -- पर अब क्यों?
पिता ने कहा -- जब तुम बाहर आओगी तो देखोगी कि जो राह में रुक गए थे, वे
अभी भी तूफ़ान में फंसे हुए हैं. चूँकि तुमने कार चलाने के प्रयत्न नहीं छोड़ा, तुम तूफ़ान के बाहर हो.
यह किस्सा उन लोगों के लिए एक प्रमाण है जो कठिन समय से गुजर रहे हैं.
मजबूत से मजबूत इंसान भी प्रयास छोड़ देते हैं.
किन्तु प्रयास कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए. निश्चित ही जिन्दगी के कठिन समय गुजर जायेंगे और सुबह के सूर्य की भांति चमक आपके जीवन में पुनः आयेगी.
राह में एक भयंकर तूफ़ान आया और लड़की ने पिता से पूछा -- अब हम क्या करें?
पिता ने जवाब दिया -- कार चलाते रहो.
तूफ़ान में कार चलाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था और तूफ़ान और भयंकर
होता जा रहा था.
अब मैं क्या करू ? -- लड़की ने पुनः पूछा.
कार चलाते रहो. -- पिता ने पुनः कहा.
थोड़ा आगे जाने पर लड़की ने देखा की राह में कई वाहन तूफ़ान की वजह से रुके हुए थे. उसने फिर अपने पिता से कहा -- मुझे कार रोक देनी चाहिए.
मैं मुश्किल से देख पा रही हूँ. यह भयंकर है और प्रत्येक ने अपना वाहन रोक दिया है. उसके पिता ने फिर निर्देशित किया -- कार रोकना नहीं. बस चलाते रहो.
अब तूफ़ान ने बहुत ही भयंकर रूप धारण कर लिया था किन्तु लड़की ने कार
चलाना नहीं रोका और अचानक ही उसने देखा कि कुछ साफ़ दिखने लगा है. कुछ किलो मीटर आगे जाने के पश्चात लड़की ने देखा कि तूफ़ान थम गया और सूर्य निकल आया.
अब उसके पिता ने कहा -- अब तुम कार रोक सकती हो और बाहर आ सकती हो.
लड़की ने पूछा -- पर अब क्यों?
पिता ने कहा -- जब तुम बाहर आओगी तो देखोगी कि जो राह में रुक गए थे, वे
अभी भी तूफ़ान में फंसे हुए हैं. चूँकि तुमने कार चलाने के प्रयत्न नहीं छोड़ा, तुम तूफ़ान के बाहर हो.
यह किस्सा उन लोगों के लिए एक प्रमाण है जो कठिन समय से गुजर रहे हैं.
मजबूत से मजबूत इंसान भी प्रयास छोड़ देते हैं.
किन्तु प्रयास कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए. निश्चित ही जिन्दगी के कठिन समय गुजर जायेंगे और सुबह के सूर्य की भांति चमक आपके जीवन में पुनः आयेगी.
Sunday, 13 October 2013
●►माता जी के अन्यन भक्तो , आज नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है.
●►माता जी के अन्यन भक्तो , आज नौवें दिन माँ
सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है.
दुर्गा मईया जगत के कल्याण हेतु नौ रूपों में प्रकट हुई और इन रूपों में अंतिम रूप है देवी सिद्धिदात्री माता का, जय माता दी
देवी प्रसन्न होने पर सम्पूर्ण जगत की रिद्धि सिद्धि अपने भक्तों को प्रदान करती हैं. देवी सिद्धिदात्री का रूप अत्यंत सौम्य है, देवी की चार भुजाएं हैं दायीं भुजा में माता ने चक्र और गदा धारण किया है, मां बांयी भुजा में शंख और कमल का फूल है.
मां सिद्धिदात्री कमल आसन पर विराजमान रहती हैं, मां की सवारी सिंह हैं. देवी ने सिद्धिदात्री का यह रूप भक्तों पर अनुकम्पा बरसाने के लिए धारण किया है. देवतागण, ऋषि-मुनि, असुर, नाग, मनुष्य सभी मां के भक्त हैं. देवी जी की भक्ति जो भी हृदय से करता है मां उसी पर अपना स्नेह लुटाती हैं.
●►मां का ध्यान करने के लिए आप“सिद्धगन्धर्वयक्षाघरसुरैरमरैरपि सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी..” इस मंत्र से स्तवन कर सकते हैं.........
शेयर करे ताकि आपकी वजह से कोई और भगत भी माँ का नाम ले सके
—
दुर्गा मईया जगत के कल्याण हेतु नौ रूपों में प्रकट हुई और इन रूपों में अंतिम रूप है देवी सिद्धिदात्री माता का, जय माता दी
देवी प्रसन्न होने पर सम्पूर्ण जगत की रिद्धि सिद्धि अपने भक्तों को प्रदान करती हैं. देवी सिद्धिदात्री का रूप अत्यंत सौम्य है, देवी की चार भुजाएं हैं दायीं भुजा में माता ने चक्र और गदा धारण किया है, मां बांयी भुजा में शंख और कमल का फूल है.
मां सिद्धिदात्री कमल आसन पर विराजमान रहती हैं, मां की सवारी सिंह हैं. देवी ने सिद्धिदात्री का यह रूप भक्तों पर अनुकम्पा बरसाने के लिए धारण किया है. देवतागण, ऋषि-मुनि, असुर, नाग, मनुष्य सभी मां के भक्त हैं. देवी जी की भक्ति जो भी हृदय से करता है मां उसी पर अपना स्नेह लुटाती हैं.
●►मां का ध्यान करने के लिए आप“सिद्धगन्धर्वयक्षाघरसुरैरमरैरपि सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी..” इस मंत्र से स्तवन कर सकते हैं.........
शेयर करे ताकि आपकी वजह से कोई और भगत भी माँ का नाम ले सके
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HAPPY DASARA TO ALL
May goddess Durga destroy all evil around you and
Fill your life with happiness and prosperity
HAPPY DASARA TO ALL
There are two important stories behind celebration of Dussehra festival in India. One story is associated with Lord Ram and another is associated with Goddess Durga. The festival of Dussehra signifies the victory of good over evil. Read on to know more about the significance and celebration of Dussehra festival.
Dasara also known as Vijaya Dashami, Dashahara, Navaratri, Durgotdsav… is one of the very important & fascinating festivals of India.
Word DASARA is derived from Sanskrit words “Dasha” & “hara” meaning removing the ten (10). This is the most auspicious festival in the Dakshinaayana or in the Southern hemisphere motion of the Sun. In Sanskrit, 'Vijaya' means Victory and 'Dashami' means 10th day.
Dussehra is also called Vijayadashami and is celebrated as victory of Goddess Durga over the demon Mahisasura.
In Hindu scriptures, Mahishasura was an asura.
Mahishasura's father Rambha was king of the asuras, and he once fell in love with a water buffalo (Princess Shyamala, cursed to be a buffalo); Mahishasura was born out of this union. He is, therefore, able to change between human and buffalo form at will (mahisha is Sanskrit word for buffalo).
The Devas and Asuras often wage wars against each other. In one such war, Rambha was killed by Indra. As Mahishasura grew up, he came to know how his father died. He collected a band of loyal soldiers and started terrorising Heaven (Swarga Loka). He invaded heaven, defeating Indra, and drove all the Devas out of heaven. Thus his revenge was complete.
The Devas formed a conclave to decide how to defeat this invincible asura. Since he was invincible to all men, they created his nemesis in the form of a young woman, Durga (a form of Shakti or Parvati). She combined the powers of all the devas in a beautiful form. After that, she marched against the demons on her mount, the Lion (wrongly depicted as a Tiger).
Mahishasura, upon hearing about her, sent his army to defeat and capture her. Durga kills all of the demons and challenges Mahishasura to a one-to-one fight. After nine days of fierce fighting (Mahishasura gave Durga a stiff opposition, as legend says of Durga re-gaining her spent energy by drinking honey), Durga finally manages to kill the powerful Mahishasura on the tenth day of the waxing moon. Durga is, therefore, called Mahishasuramardini (literally the slayer of the buffalo demon), the destroyer of Mahishasura.
Fill your life with happiness and prosperity
HAPPY DASARA TO ALL
There are two important stories behind celebration of Dussehra festival in India. One story is associated with Lord Ram and another is associated with Goddess Durga. The festival of Dussehra signifies the victory of good over evil. Read on to know more about the significance and celebration of Dussehra festival.
Dasara also known as Vijaya Dashami, Dashahara, Navaratri, Durgotdsav… is one of the very important & fascinating festivals of India.
Word DASARA is derived from Sanskrit words “Dasha” & “hara” meaning removing the ten (10). This is the most auspicious festival in the Dakshinaayana or in the Southern hemisphere motion of the Sun. In Sanskrit, 'Vijaya' means Victory and 'Dashami' means 10th day.
Dussehra is also called Vijayadashami and is celebrated as victory of Goddess Durga over the demon Mahisasura.
In Hindu scriptures, Mahishasura was an asura.
Mahishasura's father Rambha was king of the asuras, and he once fell in love with a water buffalo (Princess Shyamala, cursed to be a buffalo); Mahishasura was born out of this union. He is, therefore, able to change between human and buffalo form at will (mahisha is Sanskrit word for buffalo).
The Devas and Asuras often wage wars against each other. In one such war, Rambha was killed by Indra. As Mahishasura grew up, he came to know how his father died. He collected a band of loyal soldiers and started terrorising Heaven (Swarga Loka). He invaded heaven, defeating Indra, and drove all the Devas out of heaven. Thus his revenge was complete.
The Devas formed a conclave to decide how to defeat this invincible asura. Since he was invincible to all men, they created his nemesis in the form of a young woman, Durga (a form of Shakti or Parvati). She combined the powers of all the devas in a beautiful form. After that, she marched against the demons on her mount, the Lion (wrongly depicted as a Tiger).
Mahishasura, upon hearing about her, sent his army to defeat and capture her. Durga kills all of the demons and challenges Mahishasura to a one-to-one fight. After nine days of fierce fighting (Mahishasura gave Durga a stiff opposition, as legend says of Durga re-gaining her spent energy by drinking honey), Durga finally manages to kill the powerful Mahishasura on the tenth day of the waxing moon. Durga is, therefore, called Mahishasuramardini (literally the slayer of the buffalo demon), the destroyer of Mahishasura.
Saturday, 12 October 2013
3 प्रश्न
3 प्रश्न
अकबर का नाम तो आप सबने सुना ही होगा। भारत में अंग्रेजों से पहले मुगलों का राज्य था और अकबर एक मुगल शासक था। उसके नवरत्नों में उसका मन्त्री बीरबल भी था। वह बहुत बुद्धिमान था। एक बार अकबर दरबार में यह सोच कर आये कि आज बीरबल को भरे दरबार में शरमिन्दा करना है। इसके लिए वो बहुत तैयारी करके आये थे। आते ही अकबर ने बीरबल के सामने अचानक 3 प्रश्न उछाल दिये। प्रश्न थे- ‘ईश्वर कहाँ रहता है? वह कैसे मिलता है?
और वह करता क्या है?’’ बीरबल इन प्रश्नों को सुनकर सकपका गये और बोले- ‘‘जहाँपनाह! इन प्रश्नों के उत्तर मैं कल आपको दूँगा।" जब बीरबल घर पहुँचे तो वह बहुत उदास थे। उनके पुत्र ने जब उनसे पूछा तो उन्होंने बताया- ‘‘बेटा! आज अकबर बादशाह ने मुझसे एक साथ तीन प्रश्न ‘ईश्वर कहाँ रहता है? वह कैसे मिलता है? और वह करता क्या है?’ पूछे हैं। मुझे उनके उत्तर सूझ नही रहे हैं और कल दरबार में इनका उत्तर देना है।’’ बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘पिता जी! कल आप मुझे दरबार में अपने साथ ले चलना मैं बादशाह के प्रश्नों के उत्तर दूँगा।’’ पुत्र की हठ के कारण बीरबल अगले दिन अपने पुत्र को साथ लेकर दरबार में पहुँचे। बीरबल को देख कर बादशाह अकबर ने कहा- ‘‘बीरबल मेरे प्रश्नों के उत्तर दो। बीरबल ने कहा- ‘‘जहाँपनाह आपके प्रश्नों के उत्तर तो मेरा पुत्र भी दे सकता है।’’ अकबर ने बीरबल के पुत्र से पहला प्रश्न पूछा- ‘‘बताओ! ‘ईश्वर कहाँ रहता है?’’ बीरबल के पुत्र ने एक गिलास शक्कर मिला हुआ दूध बादशाह से मँगवाया और कहा- जहाँपनाह दूध कैसा है? अकबर ने दूध चखा और कहा कि ये मीठा है। परन्तु बादशाह सलामत या आपको इसमें शक्कर दिखाई दे रही है। बादशाह बोले नही। वह तो घुल गयी। जी हाँ, जहाँपनाह! ईश्वर भी इसी प्रकार संसार की हर वस्तु में रहता है। जैसे शक्कर दूध में घुल गयी है परन्तु वह दिखाई नही दे रही है। बादशाह ने सन्तुष्ट होकर अब दूसरे प्रश्न का उत्तर पूछा- ‘‘बताओ! ईश्वर मिलता केसे है?’’ बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह थोड़ा दही मँगवाइए।’’ बादशाह ने दही मँगवाया तो बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! क्या आपको इसमं मक्खन दिखाई दे रहा है। बादशाह ने कहा- ‘‘मक्खन तो दही में है पर इसको मथने पर ही दिखाई देगा।’’ बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! मन्थन करने पर ही ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं।’’ बादशाह ने सन्तुष्ट होकर अब अन्तिम प्रश्न का उत्तर पूछा- ‘‘बताओ! ईश्वर करता क्या है?’’ बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘महाराज! इसके लिए आपको मुझे अपना गुरू स्वीकार करना पड़ेगा।’’ अकबर बोले- ‘‘ठीक है, तुम गुरू और मैं तुम्हारा शिष्य।’’ अब बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह गुरू तो ऊँचे आसन पर बैठता है और शिष्य नीचे।’’ अकबर ने बालक के लिए सिंहासन खाली कर दिया और स्वयं नीचे बैठ गये। अब बालक ने सिंहासन पर बैठ कर कहा- ‘‘महाराज! आपके अन्तिम प्रश्न का उत्तर तो यही है।’’ अकबर बोले- ‘‘क्या मतलब? मैं कुछ समझा नहीं।’’ बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! ईश्वर यही तो करता है। पल भर में राजा को रंक बना देता है और भिखारी को सम्राट बना देता है।
अकबर का नाम तो आप सबने सुना ही होगा। भारत में अंग्रेजों से पहले मुगलों का राज्य था और अकबर एक मुगल शासक था। उसके नवरत्नों में उसका मन्त्री बीरबल भी था। वह बहुत बुद्धिमान था। एक बार अकबर दरबार में यह सोच कर आये कि आज बीरबल को भरे दरबार में शरमिन्दा करना है। इसके लिए वो बहुत तैयारी करके आये थे। आते ही अकबर ने बीरबल के सामने अचानक 3 प्रश्न उछाल दिये। प्रश्न थे- ‘ईश्वर कहाँ रहता है? वह कैसे मिलता है?
और वह करता क्या है?’’ बीरबल इन प्रश्नों को सुनकर सकपका गये और बोले- ‘‘जहाँपनाह! इन प्रश्नों के उत्तर मैं कल आपको दूँगा।" जब बीरबल घर पहुँचे तो वह बहुत उदास थे। उनके पुत्र ने जब उनसे पूछा तो उन्होंने बताया- ‘‘बेटा! आज अकबर बादशाह ने मुझसे एक साथ तीन प्रश्न ‘ईश्वर कहाँ रहता है? वह कैसे मिलता है? और वह करता क्या है?’ पूछे हैं। मुझे उनके उत्तर सूझ नही रहे हैं और कल दरबार में इनका उत्तर देना है।’’ बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘पिता जी! कल आप मुझे दरबार में अपने साथ ले चलना मैं बादशाह के प्रश्नों के उत्तर दूँगा।’’ पुत्र की हठ के कारण बीरबल अगले दिन अपने पुत्र को साथ लेकर दरबार में पहुँचे। बीरबल को देख कर बादशाह अकबर ने कहा- ‘‘बीरबल मेरे प्रश्नों के उत्तर दो। बीरबल ने कहा- ‘‘जहाँपनाह आपके प्रश्नों के उत्तर तो मेरा पुत्र भी दे सकता है।’’ अकबर ने बीरबल के पुत्र से पहला प्रश्न पूछा- ‘‘बताओ! ‘ईश्वर कहाँ रहता है?’’ बीरबल के पुत्र ने एक गिलास शक्कर मिला हुआ दूध बादशाह से मँगवाया और कहा- जहाँपनाह दूध कैसा है? अकबर ने दूध चखा और कहा कि ये मीठा है। परन्तु बादशाह सलामत या आपको इसमें शक्कर दिखाई दे रही है। बादशाह बोले नही। वह तो घुल गयी। जी हाँ, जहाँपनाह! ईश्वर भी इसी प्रकार संसार की हर वस्तु में रहता है। जैसे शक्कर दूध में घुल गयी है परन्तु वह दिखाई नही दे रही है। बादशाह ने सन्तुष्ट होकर अब दूसरे प्रश्न का उत्तर पूछा- ‘‘बताओ! ईश्वर मिलता केसे है?’’ बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह थोड़ा दही मँगवाइए।’’ बादशाह ने दही मँगवाया तो बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! क्या आपको इसमं मक्खन दिखाई दे रहा है। बादशाह ने कहा- ‘‘मक्खन तो दही में है पर इसको मथने पर ही दिखाई देगा।’’ बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! मन्थन करने पर ही ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं।’’ बादशाह ने सन्तुष्ट होकर अब अन्तिम प्रश्न का उत्तर पूछा- ‘‘बताओ! ईश्वर करता क्या है?’’ बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘महाराज! इसके लिए आपको मुझे अपना गुरू स्वीकार करना पड़ेगा।’’ अकबर बोले- ‘‘ठीक है, तुम गुरू और मैं तुम्हारा शिष्य।’’ अब बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह गुरू तो ऊँचे आसन पर बैठता है और शिष्य नीचे।’’ अकबर ने बालक के लिए सिंहासन खाली कर दिया और स्वयं नीचे बैठ गये। अब बालक ने सिंहासन पर बैठ कर कहा- ‘‘महाराज! आपके अन्तिम प्रश्न का उत्तर तो यही है।’’ अकबर बोले- ‘‘क्या मतलब? मैं कुछ समझा नहीं।’’ बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! ईश्वर यही तो करता है। पल भर में राजा को रंक बना देता है और भिखारी को सम्राट बना देता है।
●►अष्टमी , जय महागौरी !!
सोणी मैरी मायी है !!
●►अष्टमी , जय महागौरी !!
●►देवी दुर्गा के नौ रूपों में महागौरी आठवीं शक्ति स्वरूपा हैं. दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की पूजा अर्चना की जाती है. महागौरी आदी शक्ति हैं इनके तेज से संपूर्ण विश्व प्रकाश-मान होता है इनकी शक्ति अमोघ फलदायिनी हैम माँ महागौरी की अराधना से भक्तों को सभी कष्ट दूर हो जाते हैं तथा देवी का भक्त जीवन में पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी बनता है.
दुर्गा सप्तशती (Durga Saptsati) में शुभ निशुम्भ से पराजित होकर गंगा के तट पर जिस देवी की प्रार्थना देवतागण कर रहे थे वह महागौरी हैं. देवी गौरी के अंश से ही कौशिकी का जन्म हुआ जिसने शुम्भ निशुम्भ के प्रकोप से देवताओं को मुक्त कराया. यह देवी गौरी शिव की पत्नी हैं यही शिवा और शाम्भवी के नाम से भी पूजित होती हैं. —
वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोदया॥
शेयर करे ताकि आपकी वजह से कोई और भगत भी माँ का नाम ले सके
—
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दुर्गा सप्तशती (Durga Saptsati) में शुभ निशुम्भ से पराजित होकर गंगा के तट पर जिस देवी की प्रार्थना देवतागण कर रहे थे वह महागौरी हैं. देवी गौरी के अंश से ही कौशिकी का जन्म हुआ जिसने शुम्भ निशुम्भ के प्रकोप से देवताओं को मुक्त कराया. यह देवी गौरी शिव की पत्नी हैं यही शिवा और शाम्भवी के नाम से भी पूजित होती हैं. —
वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोदया॥
शेयर करे ताकि आपकी वजह से कोई और भगत भी माँ का नाम ले सके
—
Friday, 11 October 2013
2. चामुंडा देवी
हिन्दू श्रद्धालुओं का मुख्य केंद्र और 51 शक्तिपीठों में एक चामुंडा देवी देव भूमि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है. बानेर नदी के तट पर बसा यह मंदिर महाकाली को समर्पित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान शंकर माता सती को अपने कंधे पर उठाकर घूम रहे थे, तब इसी स्थान पर माता का चरण गिर पड़ा था और माता यहां शक्तिपीठ रूप में स्थापित हो गई. चामुंडा देवी मंदिर भगवान शिव और शक्ति का स्थान है. भक्तों में मान्यता है कि यहां पर शतचंडी का पाठ सुनना और सुनाना श्रेष्ठकर है और इसे सुनने और सुनाने वाले का सारा क्लेश दूर हो जाता है.
दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार चण्ड-मुण्ड नामक दो महादैत्य देवी से युद्ध करने आए तो, देवी ने काली का रूप धारण कर उनका वध कर दिया. माता देवी की भृकुटी से उत्पन्न कलिका देवी ने जब चण्ड-मुण्ड के सिर देवी को उपहार स्वरुप भेंट किए तो देवी भगवती ने प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया कि तुमने चण्ड -मुण्ड का वध किया है, अतः आज से तुम संसार में चामुंडा के नाम से विख्यात हो जाओगी. मान्यता है कि इसी कारण भक्तगण देवी के इस स्वरुप को चामुंडा रूप में पूजते हैं.
Thursday, 10 October 2013
श्रीदुर्गाष्टोत्तार्शत्ननाम्स्त्रोतम
श्रीदुर्गाष्टोत्तार्शत्ननाम्स्त्रोतम
शंकर जी पार्वती जी से कहते हैं ---कमलानने ! अष्टोत्तरशत नाम का वर्णन करता हूँ , सुनो I जिसके प्रसाद (पाठ या श्रवण ) मात्र से परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती है II
१ ॐ सती
२ साध्वी
३ भवप्रीता (भगवान शिव पर प्रीति रखनेवाली )
४ भवानी
५ भवमोचनी(संसार बंधन से मुक्त करने वाली )
६ आर्या
७ दुर्गा
८ जया
९ आद्या
१० त्रिनेत्रा
११ शूलधारिणी
१२ पिनाकधारिणी
१३ चित्रा
१४ चंडघण्टा
१५ महातपा:(भरी तपस्या करने वाली )
१६ मन: (मनन - शक्ति)
१७ बुद्धि: (बोधशक्ति )
१८ अहंकारा (अहंता का आश्रय )
१९ चित्तरूपा
२०चिता
२१ चिति:(चेतना )
२२ सर्व- मन्त्र मयी
२३ सत्ता (सत् -स्वरूपा )
२४ सत्यानन्दस्वरूप्नी
२५ अनन्ता (जिस्केस्वरूप कहीं अंत नहीं )
२६ भाविनी(सबको उत्पन्न करने वाली )
२७ भाव्या ( भावना एवं ध्यान करने योग्य )
२८ भव्या ( कल्याणरूपा )
२९ अभव्या ( जिस बढ कर भव्य कहीं है नहीं )
३० सदा -गति:
३१ शाम्भवी (शिव प्रिय )
३२ देव माता
३३ चिंता
३४ रत्न प्रिया
३५सर्व विद्या
३६ दक्ष कन्या
३७ दक्ष यज्ञविनाशनी
३८ अपर्णा ( तपस्या के समय पत्तों को भी न खाने वाली )
३९ अनेक वर्णा (अनेक रंगों वाली)
४० पाटला (लाल रंग वाली )
४१ पाटलावती ( गुलाब के फूल या लाल फूल धारण करने वाली )
४२ पट्टाम्बर परिधारना ( रेशमी वस्त्र पहनने वाली )
४३ कल मंज्ज़िर रंज्जनी ( मदुर धवनी करने वाले मंज्ज़िर को धारण करके प्रसन्न रहने वाली )
४४ अमेयविक्रमा ( असीम परक्रमवाली )
४५ क्रूरा ( दैत्यों के प्रति कठोर )
४६ सुंदरी
४७ सुरसुन्दरी
४८ वनदुर्गा
४९ मात न्ड्गी
५० मतंगमुनि पूजिता
५१ ब्राह्मी
५२ माहेश्वरी
५३ ऐन्द्री
५४ कौमारी
५५ वैष्णवी
५६ चामुंडा
५७ वाराही
५८ लक्ष्मी:
५९ पुरुषाकृति :
६० विमला
६१ उत्कर्शिनी
६२ ज्ञाना
६४ नित्या
६५ बुद्धिदा
६६ बहुला
६७ बहुलप्रेमा
६८ सर्ववहानवाहना
६९ निशुम्भशुम्भहननी
७० महिषासुरमर्दिनी
७१ मधुकैटभह्न्त्री
७२ चंडमुंडविनाशनी
७३ सर्वासुरविनाशा
७४ सर्वदानवघातिनी
७५ सर्वशास्त्र्मायी
७६ सत्या
७७ सर्वास्त्रधारिणी
७८ अनेकशास्त्रहस्ता
७९ अनेकास्त्रधारिणी
८० कुमारी
८१ एक कन्या
८२ कैशौरी
८३ युवती
८४ यति:
८५ अप्रौढा
८६ प्रौढ़ा
८७ वृद्दमाता
८८ बलप्रदा
८९ महोदरी
९० मुक्तकेशी
९१ घोररूपा
९२ महाबली
९३ अग्निज्वाला
९४ रौद्रमुखी
९५ कालरात्रि:
९६ तपस्वनी
९७ नारायणी
९८ भद्रकाली
९९ विष्णुमाया
१०० जलोदरी
१०१ शिवदूती
१०२ कराली
१०३ अनन्ता ( विनाशरहिता )
१०४ परमेश्वरी
१०५ कत्यानी
१०६ सावित्री
१०७ प्रत्यक्षा
१०८ ब्रह्मवादिनी
• जो भगवती दुर्गा के इन 108 नामों का नित्य पाठ करता है उसके लिए तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य (अप्राप्य)नहीं रहता । इस लोक में रहते हुए वह धन ,धान्य,पुत्र,अश्व एवं हाथी आदि ऐश्वर्य का भोग करते हुए धर्म ,अर्थ , काम व मोक्ष को प्राप्त करता है तथा अन्त में शाश्वत (नित्य) मुक्ति को प्राप्त होता है ।
शंकर जी पार्वती जी से कहते हैं ---कमलानने ! अष्टोत्तरशत नाम का वर्णन करता हूँ , सुनो I जिसके प्रसाद (पाठ या श्रवण ) मात्र से परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती है II
१ ॐ सती
२ साध्वी
३ भवप्रीता (भगवान शिव पर प्रीति रखनेवाली )
४ भवानी
५ भवमोचनी(संसार बंधन से मुक्त करने वाली )
६ आर्या
७ दुर्गा
८ जया
९ आद्या
१० त्रिनेत्रा
११ शूलधारिणी
१२ पिनाकधारिणी
१३ चित्रा
१४ चंडघण्टा
१५ महातपा:(भरी तपस्या करने वाली )
१६ मन: (मनन - शक्ति)
१७ बुद्धि: (बोधशक्ति )
१८ अहंकारा (अहंता का आश्रय )
१९ चित्तरूपा
२०चिता
२१ चिति:(चेतना )
२२ सर्व- मन्त्र मयी
२३ सत्ता (सत् -स्वरूपा )
२४ सत्यानन्दस्वरूप्नी
२५ अनन्ता (जिस्केस्वरूप कहीं अंत नहीं )
२६ भाविनी(सबको उत्पन्न करने वाली )
२७ भाव्या ( भावना एवं ध्यान करने योग्य )
२८ भव्या ( कल्याणरूपा )
२९ अभव्या ( जिस बढ कर भव्य कहीं है नहीं )
३० सदा -गति:
३१ शाम्भवी (शिव प्रिय )
३२ देव माता
३३ चिंता
३४ रत्न प्रिया
३५सर्व विद्या
३६ दक्ष कन्या
३७ दक्ष यज्ञविनाशनी
३८ अपर्णा ( तपस्या के समय पत्तों को भी न खाने वाली )
३९ अनेक वर्णा (अनेक रंगों वाली)
४० पाटला (लाल रंग वाली )
४१ पाटलावती ( गुलाब के फूल या लाल फूल धारण करने वाली )
४२ पट्टाम्बर परिधारना ( रेशमी वस्त्र पहनने वाली )
४३ कल मंज्ज़िर रंज्जनी ( मदुर धवनी करने वाले मंज्ज़िर को धारण करके प्रसन्न रहने वाली )
४४ अमेयविक्रमा ( असीम परक्रमवाली )
४५ क्रूरा ( दैत्यों के प्रति कठोर )
४६ सुंदरी
४७ सुरसुन्दरी
४८ वनदुर्गा
४९ मात न्ड्गी
५० मतंगमुनि पूजिता
५१ ब्राह्मी
५२ माहेश्वरी
५३ ऐन्द्री
५४ कौमारी
५५ वैष्णवी
५६ चामुंडा
५७ वाराही
५८ लक्ष्मी:
५९ पुरुषाकृति :
६० विमला
६१ उत्कर्शिनी
६२ ज्ञाना
६४ नित्या
६५ बुद्धिदा
६६ बहुला
६७ बहुलप्रेमा
६८ सर्ववहानवाहना
६९ निशुम्भशुम्भहननी
७० महिषासुरमर्दिनी
७१ मधुकैटभह्न्त्री
७२ चंडमुंडविनाशनी
७३ सर्वासुरविनाशा
७४ सर्वदानवघातिनी
७५ सर्वशास्त्र्मायी
७६ सत्या
७७ सर्वास्त्रधारिणी
७८ अनेकशास्त्रहस्ता
७९ अनेकास्त्रधारिणी
८० कुमारी
८१ एक कन्या
८२ कैशौरी
८३ युवती
८४ यति:
८५ अप्रौढा
८६ प्रौढ़ा
८७ वृद्दमाता
८८ बलप्रदा
८९ महोदरी
९० मुक्तकेशी
९१ घोररूपा
९२ महाबली
९३ अग्निज्वाला
९४ रौद्रमुखी
९५ कालरात्रि:
९६ तपस्वनी
९७ नारायणी
९८ भद्रकाली
९९ विष्णुमाया
१०० जलोदरी
१०१ शिवदूती
१०२ कराली
१०३ अनन्ता ( विनाशरहिता )
१०४ परमेश्वरी
१०५ कत्यानी
१०६ सावित्री
१०७ प्रत्यक्षा
१०८ ब्रह्मवादिनी
• जो भगवती दुर्गा के इन 108 नामों का नित्य पाठ करता है उसके लिए तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य (अप्राप्य)नहीं रहता । इस लोक में रहते हुए वह धन ,धान्य,पुत्र,अश्व एवं हाथी आदि ऐश्वर्य का भोग करते हुए धर्म ,अर्थ , काम व मोक्ष को प्राप्त करता है तथा अन्त में शाश्वत (नित्य) मुक्ति को प्राप्त होता है ।
Monday, 7 October 2013
जिन्दगी में सीखने कि लिए सदैव तत्पर रहना चाहिये.
एक ट्रक ड्राइवर अपने सामान डिलेवरी करने के लिए मेंटल हॉस्पिटल गया. सामान डिलेवरी के पश्चात वापस लौटते समय उसने देखा कि उसके ट्रक का एक पहिया पंचर हो गया. ड्राइवर ने स्टेपनी निकाल कर पहिया खोला पर गलती से उसके हाथ से पहिये कसने के चारों बोल्ट पास की गहरी नाली में गिर गए जहाँ से निकालना संभव न था. अब ड्राइवर बहुत ही परेशान हो गया कि वापस कैसे जाए.
इतने में पास से मेंटल हॉस्पिटल का एक मरीज गुजरा. उसने ड्राइवर से कि क्या बात है. ड्राइवर ने मरीज को बहुत ही हिकारत से देखते हुए सोच कि यह पागल क्या कर लेगा. फिर भी उसने मरीज को पूरी बात बता दी.
मरीज ने ड्राइवर के ऊपर हँसते हुए कहा कि तुम इतनी छोटी समस्या का समाधान भी नहीं कर सकते हो और इसीलिये तुम ड्राइवर ही हो.
ड्राइवर को एक पागलपन के मरीज से इस प्रकार का संबोधन अच्छा नहीं लगा और उसने मरीज से चेतावनी भरे शब्दों में पूछा कि तुम क्या कर सकते हो?
मरीज ने जवाब दियाकि बहुत ही साधारण बात है. बाकी के तीन पहियों से एक एक बोल्ट निकाल कर पहिया कस लो और फिर नजदीक की ऑटो परत की दुकान के पास जाकर नए बोल्ट खरीद लो.
ड्राइवर इस सुझाव से बहुत ही प्रभावित हुआ और उसने मरीज से पूछा कि तुम इतने बुद्धिमान हो फिर इस हॉस्पिटल में क्यों हो?
मरीज ने जवाब दिया कि, "मैं सनकी हूँ पर मूर्ख नहीं."
कोई आश्चर्य की बात नहीं कि कुछ लोग ट्रक ड्राइवर की तरह व्यवहार करते हैं, सोचते हैं कि दूसरे लोग मूर्ख हैं. अतः हम सब ज्ञानी और पढ़ें लिखे हैं, पर निरीक्षण करें कि हमारे आस् पास इस प्रकार के सनकी व्यक्ति भी रहते हैं जिनसे ढेर सारे व्यावहारिक जीवन के नुस्खे मिल सकते हैं और जो हमारी बुद्धिमत्ता को ललकारते रहेंगे.
कहानी से सीख : कभी भी यह न सोचे कि आपको सब कुछ आता है और दूसरे लोगों को उनके बाहरी आवरण / दिखावट के आधार पर उनके ज्ञान का अंदाज़ न लगाये.
Friday, 4 October 2013
Durga puja sms, durga puja text messages and durga puja greetings
May dis Durga Puja
You all get the happiness
You had longed 4 times..
Enjoy Everyone.
Happy durga puja.
Khushiyan aapki kam na ho
Daman mein aapke koi kanta na ho
Jab bhi koi musibat aaye
Toh “Maa Durga” aapke sath ho
Happy durga puja.
May Maa Durga Durgatinashini bring joy to you
And your loved ones.
May the divine blessings of Maa Durga be with you always!
Happy Durga puja wishes
Like she blessed Lord Rama
To fight the evil,
Like he fought Ravana
Happy durga puja 2013
Is Durga Puja aapki zindagi
khushion se bhari ho,
Duniya ujalo se roshan ho,
Ghar par Maa Durga ka aagman ho
Happy durga puja.
Those empty spaces were my silent prayers,
Asking Maa Durga to guide nd protect you
Always in whatever YOU do nd wherever YOU are!
Happy durga puja. durga puja mobile sms
As long as Ganeshji’s trunk,
Wealth and prosperity as big as his stomach,
Happiness as sweet as his ladoos
And may your trouble be as small as his mouse.
Happy Durga puja
Happy durga puja.
May your life be filled with
happiness on this pious festival of Navratri,
Happy durga puja.
Memories of moments celebrated together
Moments that have been attached in my heart forever
Make me Miss You even more this Navratri.
Hope this Navratri brings in Good Fortune
And Long lasting happiness for you!
Happy durga puja and Dussehra sms
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Durga Puja Khushio ka,
Ujalo ka, Ma Durga ka,
Is Durga puja Aapki Jindagi khushio se bhari ho,
Duniya ujalo se roshan ho,
ghar par Maa Durga ka Aagman ho…
Happy durga puja.
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