को कहा। रानियों ने कहा कि समय आने पर वे
मांग लेंगी। कुछ समय बाद राजा ने एक
अपराधी को मृत्युदंड दिया। बड़ी रानी ने
सोचा कि इस मरणासन्न व्यक्ति को एक
दिन का जीवनदान देकर उसे उत्तम पकवान खिलाकर खुश करना चाहिए। उन्होंने राजा से
प्रार्थना की- मेरे वरदान के रूप में आप इस
अपराधी को एक दिन का जीवनदान दें और
उसका आतिथ्य मुझे करने दें।
रानी की प्रार्थना स्वीकार कर ली गई। रानी ने
अपराधी को स्वादिष्ट भोजन कराया। किंतु अपराधी ने उस राजसी खाने में कोई खास
रुचि नहीं ली। दूसरी रानी ने भी वही वरदान
मांगा और अपराधी को एक दिन का जीवनदान
और मिल गया। दूसरी रानी ने खाना खिलाने के
साथ उसे सुंदर वस्त्र भी दिए। पर
अपराधी असंतुष्ट रहा। तीसरे दिन तीसरी रानी ने फिर वही वरदान
मांगकर उसके नृत्य-संगीत
की व्यवस्था भी की। किंतु अपराधी का मन
तनिक भी नहीं लगा। चौथे दिन सबसे
छोटी रानी ने राजा से प्रार्थना की कि मैं
वरदान में चाहती हूं कि इस अपराधी को क्षमादान दिया जाए।
रानी की प्रार्थना स्वीकार कर ली गई। उस
रानी ने अपराधी को सूखी रोटियां व दाल
खिलाई, जिन्हें उसने बड़े आनंद से खाया।
राजा ने अपराधी से इस बारे में पूछा तो वह
बोला- राजन, मुझे तो छोटी रानी की रूखी- सूखी रोटियां सबसे स्वादिष्ट लगीं,
क्योंकि तब मुझे मृत्यु का भय नहीं था। उससे
पहले मौत के भय के कारण मुझे कुछ
भी अच्छा नहीं लग रहा था।
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