Friday 4 October 2013

Navratri kalash sthapana 2013




 

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नवरात्रि कलश स्थापना दिन व शुभ मुहूर्त - ५ अक्टूबर सुबह ६.२४  से ७.१५
नवरात्री पूजा के लिए सर्वप्रथम सुबह में स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहन कर पूजा प्रारम्भ करनी चाहिए ! 

नवरात्री के कलश स्थापना के लिए मुहूर्त के अनुसार, घर में मंदिर के सामने चौकी पर कलश स्थापना करनी चाहिए !
 
कलश स्थापना में मिटटी के बर्तन में मिट्टी दाल कर उसमें जौ डाल कर, उस बर्तन पर कलश को स्थापित कर कलश में गंगाजल मिला पानी डालकर, उसमें चाँदी का सिक्का, सुपारी और फूल डालकर उस कलश के ऊपर आम का पल्लव डाले ! 
एक छोटी प्याली में चावल डाल कर उस पर नारियल को रख कर उस पर जलता हुआ दिया रखे !
 
कलश को सजाने के लिए ॐ और स्वास्तिक कुमकुम से बना कर प्रतिस्थापित करे! 
 
उसके बाद माँ के मूर्ति की या फोटो की स्थापना करके उनको गंगा जल अथवा पंचामृत से स्नान करवाए ! 
 
तत्पश्चात रोली मोली , और कुमकुम तथा वस्त्र आदि से सुसज्जित कर उन्हें आसन पर प्रतिष्ठित करे ! 
 




घट स्थापनम 

अन्नतर दाहिने हाथ से भूमि स्पर्श करे! जिस स्थान पर कलश स्थापना करनी हो उस स्थान पर धान्य रखे ! उपरोक्त धान्य के ऊपर  कलश स्थापना करे! अगर जौ भी जमाते हो तो मिटटी के पात्र में बालू और मिटटी मिला हुआ डालकर उसमें जौ बो दे ! उस पात्र को धान्य के ऊपर रखे और तत्पश्चात उस पर कलश प्रतिस्थापित करे! कलश में जल भर दे और कलश के ऊपर चन्दन से ॐ और स्वस्तिक बना कर सजाये ! फिर स्वौंषधी कलश में डाले! फिर दूर्वादल (दूब ) छोड़े और पंच पल्लव कलश के मुख पर रखे ! सप्त मृतिका कलश में छोड़े, पुंगीफल (सुपाड़ी ) पंचरत्न और सुवर्ण भी उसमें डाले ! 
अनन्तर वस्त्र युग्म (जोड़ा कपडा ) से कलश को लपेटे , फिर पूर्णपात्र (चावल से भरकर ) कलश के उपर रखे और फिर उस पर नारियल पर ॐ लिख कर लाल चुनरी से लपेट कर कलश पर रख दे ! 
 
फिर निम्न मंत्र से कलश में आह्वाहन करे ! 
 
आह्वाहन मंत्र 
 
मकरस्थं पाशहस्तं स्वर्णसम्पत्तिमिश्वरम !
आह्वायेयंप्रतोचिशं वरुणं याद्सां पतिम !!
 
ॐ तत्वायामि ब्रह्मणा ब्बन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविर्भिः अह्ड्मानो वरुणेह बोध्युरूश समानआयुः प्रमोषीः !!
 
कलशे वरुणं साङ्ग सपरिवार सायुधं सशक्तिकमावाहयामि !! ॐ अपंपातये वरुणाय नमह !! इतियथोपचारैर्वरुणं ( कलशं) संपूज्य गँगादीन आवाहयेत !
 
मंत्रोपचार से कलश का पूजन करे और गंगा आदि नदियों व् समुद्र को आहवाहन करे ! 
 
ॐ कलाः कला हि देवानाम दानवानाम कलाः कलाः ! स्पृह्म निर्मितो येन कलशस्तेन कथ्येत !!1!!
कलशस्य मुखे विष्णुः कन्ठरूद्रः समाश्रितः !! 
 
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृ गणाः स्मृताः !!2!!
 
कुक्षौ तु सागराः सप्त सप्तदीपा च मेदिनी !!
अर्जुनाः गोमती चैव चन्द्रभागा सरस्वती !!3!!
 
कावेरी कृष्णावेणा च गंगा चैव महानदी !! 
ताप्ती गोदावरी चैव माहेन्द्री नर्मदा तथा !!4!!
 
नद्याश्च विविधा जाता नद्यः सर्वास्तथा पराः !!
 
पृथिव्याम यानि तिर्थानि कलशस्थानि तानि वै !!5!!
 
सर्वे समुद्रास्सरितस्तिथार्नि जलदा नदाः !!
आयान्तु मम शांत्त्यर्थम दुरितक्षय कारकः !!6!!
ऋग्वेदोथ यजुर्वेद - सामवेदोहाथवर्णः !!
अङ्गैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः !!7!!
अत्र गायत्री सावित्री शांतिपुष्टिकरी तथा !!
आयान्तु मम शान्त्यर्थ दुरितक्षयकारकाः !!8!!
फिर कलश की विधि वत पूजन करे और यथाविधि दुर्गा देवी की प्राण प्रतिष्ठा करके पुष्प लेकर दुर्गा देवी का आहवाहन और ध्यान करे! 
दुर्गे देवि समागच्छ सान्निध्यमहि कल्पय !!
वलिं पूजां गृहाणत्वमष्टआभिः शक्तिभिः सहः !!3!!
 
 
jai mata di !

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