Wednesday 25 December 2013

Chamunda Mandir- Shakti Peeth-चामुंडा मंदिर- शक्तिपीठ


हिन्दू श्रद्धालुओं का मुख्य केंद्र और 51 शक्तिपीठों में एक चामुंडा देवी देव भूमि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है. बानेर नदी के तट पर बसा यह मंदिर महाकाली को समर्पित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान शंकर माता सती को अपने कंधे पर उठाकर घूम रहे थे, तब इसी स्थान पर माता का चरण गिर पड़ा था और माता यहां शक्तिपीठ रूप में स्थापित हो गई. चामुंडा देवी मंदिर भगवान शिव और शक्ति का स्थान है. भक्तों में मान्यता है कि यहां पर शतचंडी का पाठ सुनना और सुनाना श्रेष्ठकर है और इसे सुनने और सुनाने वाले का सारा क्लेश दूर हो जाता है.
दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार चण्ड-मुण्ड नामक दो महादैत्य देवी से युद्ध करने आए तो, देवी ने काली का रूप धारण कर उनका वध कर दिया. माता देवी की भृकुटी से उत्पन्न कलिका देवी ने जब चण्ड-मुण्ड के सिर देवी को उपहार स्वरुप भेंट किए तो देवी भगवती ने प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया कि तुमने चण्ड -मुण्ड का वध किया है, अतः आज से तुम संसार में चामुंडा के नाम से विख्यात हो जाओगी. मान्यता है कि इसी कारण भक्तगण देवी के इस स्वरुप को चामुंडा रूप में पूजते हैं.
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Hindu shraddhaluo ka mukhya kendra aur 51 shaktipitho me ek Chamunda Devi dev bhumi Himachal Pradesh ke Kangda zile me sthit hai. Baner Nadi ke tat par basa yah mandir Mahakali ko samarpit hai. Pauranik kathao ke anusar jab Bhagvan Shankar Mata Sati ko apne kandhe par uthakar ghum rahe the, tab isi sthan par mata ka charan gir pada tha aur mata yaha shaktipith roop me sthapit ho gayi. Chamunda Devi Mandir Bhagvan Shiv aur Shakti ka sthan hai. Bhakto me manyata hai ki yaha par Shatchandi ka path karna sunana aur sunaana shreshthkar hai aur ise sunane aur sunane wale ka sara klesh door ho jata hai.
Durga Saptshati ke saptam adhyaay me varnit kathao ke anusar ek bar Chand-Mund namak do mahadaitya Devi se yuddh karne aaye to, Devi ne Kali ka roop dharan kar unka vadh kar diya. Mata Devi ki bhrikuti se utpann Kalika Devi ne jab Chand-Mund ke sir Devi ko uphar swaroop bhent kiye to Devi Bhagvati prasann hokar unhe var diya ki tumne Chand-Mund ka vadh kiya hai, atah aaj se tum sansar me Chamunda ke naam se vikhyat ho jaaogi. Manyata hai ki isi karan bhaktgan Devi ke is swaroop ko Chamunda roop me poojte hain.



शहर :कांगड़ा
राज्य :हिमाचल प्रदेश
क्षेत्र :उत्तर भारत

Tuesday 17 December 2013

श्री हरसिद्धि देवी 
यहाँ सती की केहुनी गिरी थी इसी से यहाँ देवी की कोई प्रतिमा नहीं , 

प्राचीन काल में चण्ड, प्रचण्ड नामक दो राक्षस थे , जिन्होंने अपने बल - पराक्रम से सारे संसार को कंपा दिया था। एक बार ये दोनों कैलास पर गए . जब ये दोनो
ं अंदर जाने लगे तो द्वार पर नंदीगण ने इन्हे रोका, जिससे क्रोधित होकर इन्होने नंदीगण को घायल कर डाला। जब भगवान् शंकर को यह बात मालुम हुई तो उन्होंने चण्डी का समरण किया . देवी ने तुरंत प्रकट होकर शिवजी की आज्ञा के अनुसार उन राक्षस का वध कर दिया। शिवजी ने देवी की विजय पर प्रसन्न होकर कहा कि अब से संसार में तुम्हारा नाम 'हरसिद्धि' प्रसिद्ध होगा और लोग इसी नाम से तुम्हारी पूजा करेंगे। तब से माता हरसिद्धि उज्जैन के महाकालवन में ही विराजती है 

कहते है सम्राट विक्रमादित्य कि आराध्या देवी यह श्री हरसिद्धि ही थी। वह इन्ही की कृपा से निर्विघ्न शासनकार्य चलाया करते थे। महाराज माताजी के इतने बड़े भक्त थे कि वह हर बारहवे साल सवयं अपने हाथो अपना सिर उनके चरणो पर चढ़ाया करते थे और माता की कृपा से उनका सिर फिर पैदा हो जाता था। इस तरह राजा ने ग्यारह बार पूजा की और बार -२ जीवित हो गए। बारहवी बार जब उन्हों ने पूजा कि तो सिर वापस नहीं हुआ और इस तरह उनका जीवन समाप्त हो गया। आज भी मंदिर के एक कोने में ग्यारह सिन्दूर लगे हुए रुण्ड रखे हुए है। लोगो का कहना है कि ये विक्रम के कटे हुए मुण्ड है। किन्तु इस विषय में कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं पाया जाता। अब कहिये जय माता

Sunday 17 November 2013

श्रीमद्भागवत महापुराण * : Jai Shree Krishna

( श्रीमद्भागवत महापुराण - १०/३/४ ) - - [ श्री कृष्ण जन्म ] ( कृपया पूरा पढ़ें ) - -संत पुरुष पहले से ही चाहते थे कि असुरों की बढ़ोतरी न होनें पाये l अब उनका मन सहसा प्रसन्नता से भर गया l जिस समय भगवान् के आविर्भाव का अवसर आया , स्वर्ग में देवताओं की दुन्दुभियाँ अपनें आप बज उठीं l 


                   
                                                                                                                श्रीमद्भागवत महापुराण *

Monday 11 November 2013

श्रीमद्भागवत महापुराण - १०/०३/०३ : Jai Shree Krishna

( श्रीमद्भागवत महापुराण - १०/०३/०३ ) - [ श्री कृष्ण जन्म ]- नदियों का जल निर्मल हो गया था l रात्रि के समय भी सरोवरों में कमल खिल रहे थे l वन में वृक्षों की पंक्तियाँ रंग बिरंगे पुष्पों के गुच्छों से लड़ गयी थीं l कहीं पक्षी चहक रहे थे , तो कहीं भौंरे गुनगुना रहे थे l                                                                                                                                                                                  ..श्रीमद्भागवत महापुराण

श्रीमद्भागवत गीता - १०/०३/ १-२ ) : Jai Shree Krishna

( श्रीमद्भागवत गीता - १०/०३/ १-२ ) - { कृष्ण जन्म } - [ कृपया पूरा पढ़ें ] - - श्री शुकदेव जी कहते हैं --> परीक्षित ! अब समस्त शुभ गुणों से युक्त बहुत सुहावना समय आया l रोहिणी नक्षत्र था l आकाश के सभी नक्षत्र ,ग्रह और तारे शांत -- सौम्य हो रहे थे l दिशाएँ स्वच्छ प्रसन्न थीं l निर्मल आकाश में तारे जगमगा रहे थे l पृथ्वी के बड़े - बड़े नगर , छोटे - छोटे गाँव , अहीरों की बस्तियाँ और हीरे आदि की खानें मंगलमय हो रही थीं l
                                                                                            .गीता .

जो भी काम करना शुरू करे उसे पूरा करके ही छोड़े जय माता दी

एक मकड़ी थी. उसने आराम से रहने के लिए एक शानदार
जाला बनाने का विचार किया और सोचा की इस जाले मे खूब
कीड़ें, मक्खियाँ फसेंगी और मै उसे आहार बनाउंगी और मजे से
रहूंगी . उसने कमरे के एक कोने को पसंद किया और
वहाँ जाला बुनना शुरू किया. कुछ देर बाद आधा जाला बुन कर
तैयार हो गया. यह देखकर वह मकड़ी काफी खुश हुई
कि तभी अचानक उसकी नजर एक बिल्ली पर पड़ी जो उसे
देखकर हँस रही थी.
मकड़ी को गुस्सा आ गया और वह बिल्ली से बोली , ” हँस
क्यो रही हो?”
”हँसू नही तो क्या करू.” , बिल्ली ने जवाब दिया , ”
यहाँ मक्खियाँ नही है ये जगह तो बिलकुल साफ सुथरी है,
यहाँ कौन आयेगा तेरे जाले मे.”
ये बात मकड़ी के गले उतर गई. उसने अच्छी सलाह के लिये
बिल्ली को धन्यवाद दिया और जाला अधूरा छोड़कर
दूसरी जगह तलाश करने लगी. उसने ईधर ऊधर देखा. उसे एक
खिड़की नजर आयी और फिर उसमे जाला बुनना शुरू किया कुछ
देर तक वह जाला बुनती रही , तभी एक चिड़िया आयी और
मकड़ी का मजाक उड़ाते हुए बोली , ” अरे मकड़ी , तू
भी कितनी बेवकूफ है.”
“क्यो ?”, मकड़ी ने पूछा.
चिड़िया उसे समझाने लगी , ” अरे यहां तो खिड़की से तेज
हवा आती है. यहा तो तू अपने जाले के साथ ही उड़ जायेगी.”
मकड़ी को चिड़िया की बात ठीक लगीँ और वह
वहाँ भी जाला अधूरा बना छोड़कर सोचने लगी अब
कहाँ जाला बनायाँ जाये. समय काफी बीत चूका था और अब
उसे भूख भी लगने लगी थी .अब उसे एक
आलमारी का खुला दरवाजा दिखा और उसने उसी मे
अपना जाला बुनना शुरू किया. कुछ जाला बुना ही था तभी उसे
एक काक्रोच नजर आया जो जाले को अचरज भरे नजरो से देख
रहा था.
मकड़ी ने पूछा – ‘इस तरह क्यो देख रहे हो?’
काक्रोच बोला-,” अरे यहाँ कहाँ जाला बुनने चली आयी ये
तो बेकार की आलमारी है. अभी ये यहाँ पड़ी है कुछ दिनों बाद
इसे बेच दिया जायेगा और तुम्हारी सारी मेहनत बेकार
चली जायेगी. यह सुन कर मकड़ी ने वहां से हट जाना ही बेहतर
समझा .
बार-बार प्रयास करने से वह काफी थक चुकी थी और उसके
अंदर जाला बुनने की ताकत ही नही बची थी. भूख की वजह से
वह परेशान थी. उसे पछतावा हो रहा था कि अगर पहले
ही जाला बुन लेती तो अच्छा रहता. पर अब वह कुछ नहीं कर
सकती थी उसी हालत मे पड़ी रही.
जब मकड़ी को लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता है तो उसने
पास से गुजर रही चींटी से मदद करने का आग्रह किया .
चींटी बोली, ” मैं बहुत देर से तुम्हे देख रही थी , तुम बार- बार
अपना काम शुरू करती और दूसरों के कहने पर उसे अधूरा छोड़
देती . और जो लोग ऐसा करते हैं , उनकी यही हालत होती है.”
और ऐसा कहते हुए वह अपने रास्ते चली गई और
मकड़ी पछताती हुई निढाल पड़ी रही.
दोस्तों , हमारी ज़िन्दगी मे भी कई बार कुछ ऐसा ही होता है.
हम कोई काम start करते है. शुरू -शुरू मे तो हम उस काम के
लिये बड़े उत्साहित रहते है पर लोगो के comments की वजह
से उत्साह कम होने लगता है और हम अपना काम बीच मे
ही छोड़ देते है और जब बाद मे पता चलता है कि हम अपने
सफलता के कितने नजदीक थे तो बाद मे पछतावे के
अलावा कुछ नही बचता

Saturday 2 November 2013

HAPPY CHOTI DIWALI : काली पूजन की हार्दिक शुभकामनाये !

The day before diwali is celebrated as kali chaudas, narak chaturdashi, roop chaudas and chhoti diwali.
Kali means Dark (eternal) and Chaudas - Fourteenth. Thus, celebrated on the 14th day of the dark half of Āshwin month, Kali Chaudas is the day allotted to the worship of Mahakali or Shakti and is believed that on this day Kali killed the most wicked Narakasura. Also referred to as Naraka-Chaturdashi, Kali Chaudas is day to abolish laziness and evil which create hell in our life and shine light on life. The strength to protect others is referred as Kali, and if its used for God's work is called Maha-kali.

There are many significant rituals and stories behind this day. lets read a few of them. 

Story of Lord Hanuman and Sun

Once Hanumanji as a baby was very hungry. Whilst lying down he saw the sun in the sky and thought it was a fruit and went to pick it. He flew into the sky and put the whole sun in his mouth causing darkness throughout the entire universe. Lord Indra requested that Hanumanji return the sun. When Hanumanji refused, Lord Indra unleashed his vajra and knocked Hanumanji down to earth releasing the Sun. 

Legend of King Bali

King Bali became the most powerful king on earth. But he became highly arrogant. His form of charity was an occasion for pomp and show and those who went to seek Alms from the king Bali suffered insults and humiliation. His arrogance and misrule ended when the Lord appeared as beggar (vaman avtaar). King Bali asked the dwarf beggar to get anything in his kingdom. Lord replied he just want a piece of land that could be covered in his 3 steps. And with his first step Lord Vishnu covered the entire heaven, with the second step the earth and asked Bali where to keep his third step. Bali offered his head and became spiritually enlightened. The Narak chaturdashi day therefore is dedicated to lights and prayers and the elimination of greed.

Story of Narakasur vadh

Demon king Narakasur defeated Lord Indra and snatched away the magnificent earrings of Aditi, the Mother of Goddess. He also imprisoned sixteen thousand daughters of the gods and saints in his harem. On the day previous to Narak chaturdashi, Lord Krishna and devi Satyabhama killed the demon and liberated the imprisoned women. They also recovered those precious earrings of  Maa Aditi. Destruction of Narkasur made everyone happy and that why this day is celebrated as Narak Chaturdashi.

There is a very interesting tale associated with this day.
Narakaasura was a demon king ruling over Praagjyotishapura (the present day Assam). By virtue of his powers and boons secured from God, he became all conquering. Power made him big headed and he became a menace to the good and the holy men. He considered women as only an instrument of fulfilling his desires and had 16,000 ladies in captivity. The Gods headed by Davendra implored Sri Krishna to come to their rescue. Sri Krishna came from Dwarka and destroyed the huge army, which opposed him and finally beheaded Narakaasura himself. The population was freed from the oppressive tyranny and all heaved a sigh of relief. The 16,000 women kept in captivity by the demon king were freed. With a view to removing any stigma on them and according them social dignity, Sri Krishna gave all of them the status of his wives. The people lighted Deepaks on this dark night and made it a bright, cheerful and joyous night by wearing bright and new clothes.

HAPPY CHOTI DIWALI

Bhent--माँ के भेंटे

MAA NE KHEL RACHAYA HAI HUNN MAUJA HI MAUJA... DAR TE APP BULYA HAI HUN MAUJA HI MAUJA ...ASSAN NE US TOH JO MANGYA HAI OH PAYA HAI HUN MAUJA HI MAUJA ... 100-100 WARII CHARNA CH MATHHA ASI TEKYA JADO HOGIYA NE DUR UDASIYAN.. DUNIYA DI SHAAN MAHA RANI DA DIDAR KAR KUSH HUIYAN AKHIAN PAYSIYN ... CHARNA CH VAGDI GANGA DA AMRIT PAAN KARYA HAI HUN MAUJA HI MAUJA .. JAI MATA DI

Friday 1 November 2013

धनतेरस की पौराणिक कथI

धनतेरस की पौराणिक कथI

एक बार यमराज ने अपने दूतों से प्रश्न किया- क्या प्राणियों के प्राण हरते समय तुम्हें किसी पर दया भी आती है? यमदूत संकोच में पड़कर बोले- नहीं महाराज! हम तो आपकी आज्ञा का पालन करते हैं। हमें दया-भाव से क्या प्रयोजन?

यमराज ने सोचा कि शायद ये संकोचवश ऐसा कह रहे हैं। अतः उन्हें निर्भय करते हुए वे बोले- संकोच मत करो। यदि कभी कहीं तुम्हारा मन पसीजा हो तो निडर होकर कहो। तब यमदूतों ने डरते-डरते बताया- सचमुच! एक ऐसी ही घटना घटी थी महाराज, जब हमारा हृदय काँप उठा था।

ऐसी क्या घटना घटी थी? -उत्सुकतावश यमराज ने पूछा। दूतों ने कहा- महाराज! हंस नाम का राजा एक दिन शिकार के लिए गया। वह जंगल में अपने साथियों से बिछड़कर भटक गया और दूसरे राज्य की सीमा में चला गया। फिर? वहाँ के राजा हेमा ने राजा हंस का बड़ा सत्कार किया।

उसी दिन राजा हेमा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया था। ज्योतिषियों ने नक्षत्र गणना करके बताया कि यह बालक विवाह के चार दिन बाद मर जाएगा। राजा के आदेश से उस बालक को यमुना के तट पर एक गुहा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा गया। उस तक स्त्रियों की छाया भी न पहुँचने दी गई।

किन्तु विधि का विधान तो अडिग होता है। समय बीतता रहा। संयोग से एक दिन राजा हंस की युवा बेटी यमुना के तट पर निकल गई और उसने उस ब्रह्मचारी बालक से गंधर्व विवाह कर लिया। चौथा दिन आया और राजकुँवर मृत्यु को प्राप्त हुआ। उस नवपरिणीता का करुण विलाप सुनकर हमारा हृदय काँप गया। ऐसी सुंदर जोड़ी हमने कभी नहीं देखी थी। वे कामदेव तथा रति से भी कम नहीं थे। उस युवक को कालग्रस्त करते समय हमारे भी अश्रु नहीं थम पाए थे।

यमराज ने द्रवित होकर कहा- क्या किया जाए? विधि के विधान की मर्यादा हेतु हमें ऐसा अप्रिय कार्य करना पड़ा। महाराज! -एकाएक एक दूत ने पूछा- क्या अकालमृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है? यमराज नेअकाल मृत्यु से बचने का उपाय बताते हुए कहा- धनतेरस के पूजन एवं दीपदान को विधिपूर्वक करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है। जिस घर में यह पूजन होता है, वहाँ अकाल मृत्यु का भय पास भी नहीं फटकता।

इसी घटना से धनतेरस के दिन धन्वंतरि पूजन सहित दीपदान की प्रथा का प्रचलन शुरू हुआ।

Monday 28 October 2013

Jai Shree Krishna








A beautiful life does not just happen,
It is built daily by
Prayer
Humility
Sacrifice and
Hard work.
Bad things are always going to happen in life.
People will hurt you
But you can’t use that an excuse to
hurt someone back.
As long as you know that GOD is for you,
it doesn’t matter who is against you.
Anyone can give up.
It’s the easiest thing in the world to do.
But to hold it together when everyone else
would understand if you fell apart,
That’s true strength.
You change for two reason,
Either you learn enough that you want to
Or
You’ve been hurt enough that you have to.
As much as you want to plan your life,
It has a way of surprising you
with unexpected
Things that will make you Happier than you
originally planned.
That’s what you call …..
GOD's WILL.....

JAY SHRI KRISHNA

GOOD NIGHT WORLD

Saturday 26 October 2013

माँ की ममता का अद्भुत उदाहरण

माँ की ममता का अद्भुत उदाहरण जो आपकी आँखें नम कर देगा । Incredible hindi story about Mothers sacrifice and love.
"बचाव दल के प्रमुख का कहना था कि पता नहीं क्यों मुझे उस महिला का घर अपनी तरफ खींच रहा था. कुछ था जो मुझसे कह रहा था कि मैं इस घर को ऐसे छोड़ कर न जाऊं और मैंने अपने दिल की बात मानने का फैसला किया."
कुछ समय पहले जापान में आये सुनामी के दौरान एक दिल को छू लेने वाली घटना हुई...
भूकंप के बाद बचाव कार्य का एक दल एक महिला के पूर्ण रूप से ध्वस्त हुए घर की जांच कर रहा था. बारीक दरारों में से महिला का मृत शरीर दिखा, लेकिन वो एक अजीब अवस्था में था. महिला अपने घुटनों के बल बैठी थी. ठीक वैसे ही जैसे मंदिर में लोग भगवान के सामने नमन करते है. उसके दोनों हाथ किसी चीज़ को पकडे हुए थे और भूकंप से उस महिला की पीठ और सर को काफी क्षति पहुंची थी.
काफी मेहनत के बाद दल के सदस्य ने बारीक दरारों में कुछ जगह बनाकर अपना हाथ महिला की तरफ बढ़ाया. बचाव दल को उम्मीद थी कि शायद महिला जिंदा हो, लेकिन महिला का शरीर ठंडा हो चूका था और बचाव दल समझ गया की महिला मर चुकी है.
बचाव दल उस घर को छोड़ दूसरे मकानों की ओर चल पड़ा. बचाव दल के प्रमुख का कहना था कि, 'पता नहीं क्यूँ मुझे उस महिला का घर अपनी तरफ खींच रहा था. कुछ था जो मुझसे कह रहा था कि मैं इस घर को ऐसे छोड़ कर न जाऊं और मैंने अपने दिल की बात मानने का फैसला किया.'
उसके बाद बचाव दल एक बार फिर उस महिला के घर की तरफ पहुंचा. दल प्रमुख ने मलबे को सावधानी से हटा कर बारीक दरारों में से अपना हाथ महिला की तरफ बढ़ाया. महिला के शरीर के नीचे की जगह को हाथों से टटोलने लगा. तभी उनके मुंह से निकला, 'बच्चा... यहाँ एक बच्चा है.'
अब पूरा दल काम में जुट गया. सावधानी से मलबा हटाया जाने लगा. तब उन्हें महिला के मृत शरीर के नीचे एक टोकरी में रेशमी कम्बल में लिपटा हुआ 3 माह का एक बच्चा मिला. दल को समझ में आ चुका था कि महिला ने अपने बच्चे को बचाने के लिए अपने जीवन का त्याग किया है.
भूकंप के दौरान जब घर गिरने वाला था तब उस महिला ने अपने शरीर से सुरक्षा देकर अपने बच्चे की रक्षा की थी. डॉक्टर भी जल्द ही वहां आ पहुंचे. दल ने जब बच्चे को उठाया तब बच्चा बेहोश था.
बचाव दल ने बच्चे का कम्बल हटाया तब उन्हें वहां एक मोबाइल मिला, जिसके स्क्रीन पर सन्देश लिखा था, 'मेरे बच्चे अगर तुम बच गए तो बस इतना याद रखना कि तुम्हारी माँ तुमसे बहुत प्यार करती थी.'
मोबाइल बचाव दल में एक हाथ से दूसरे हाथ जाने लगा, सभी ने वो सन्देश पढ़ा, सबकी आँखें नम हो गयी...
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Thursday 24 October 2013

एक गरीब युवक, अपनी गरीबी से परेशान होकर, अपना जीवन समाप्त करने नदी पर गया, वहां एक साधू ने उसे ऐसा करने से रोक दिया।


एक गरीब युवक, अपनी गरीबी से परेशान होकर, अपना जीवन समाप्त करने नदी पर गया, वहां एक साधू ने उसे ऐसा करने से रोक दिया।

साधू ने, युवक की परेशानी को सुन कर कहा, कि मेरे पास एक विद्या है, जिससे ऐसा जादुई घड़ा बन जायेगा जो भी इस घड़े से मांगोगे, ये जादुई घड़ा पूरी कर देगा, पर जिस दिन ये घड़ा फूट गया, उसी समय, जो कुछ भी इस घड़े ने दिया है, वह सब गायब हो जायेगा।

अगर तुम मेरी 2 साल तक सेवा करो, तो ये घड़ा, मैं तुम्हे दे सकता हूँ और, अगर 5 साल तक तुम मेरी सेवा करो, तो मैं, ये घड़ा बनाने की विद्या तुम्हे सिखा दूंगा। बोलो तुम क्या चाहते हो,
युवक ने कहा, महाराज मैं तो 2 साल ही आप की सेवा करना चाहूँगा , मुझे तो जल्द से जल्द, बस ये घड़ा ही चाहिए, मैं इसे बहुत संभाल कर रखूँगा, कभी फूटने ही नहीं दूंगा।

इस तरह 2 साल सेवा करने के बाद, युवक ने वो जादुई घड़ा प्राप्त कर लिया, और अपने घर पहुँच गया।

उसने घड़े से अपनी हर इच्छा पूरी करवानी शुरू कर दी, महल बनवाया, नौकर चाकर मांगे, सभी को अपनी शान शौकत दिखाने लगा, सभी को बुला-बुला कर दावतें देने लगा और बहुत ही विलासिता का जीवन जीने लगा, उसने शराब भी पीनी शुरू कर दी और एक दिन नशें में, घड़ा सर पर रख नाचने लगा और ठोकर लगने से घड़ा गिर गया और फूट गया.

घड़ा फूटते ही सभी कुछ गायब हो गया, अब युवक सोचने लगा कि काश मैंने जल्दबाजी न की होती और घड़ा बनाने की विद्या सीख ली होती, तो आज मैं, फिर से कंगाल न होता।

" ईश्वर हमें हमेशा 2 रास्ते पर रखता है एक आसान -जल्दी वाला और दूसरा थोडा लम्बे समय वाला, पर गहरे ज्ञान वाला, ये हमें चुनना होता है की हम किस रास्ते पर चलें "

" कोई भी काम जल्दी में करना अच्छा नहीं होता, बल्कि उसके विषय में गहरा ज्ञान आपको अनुभवी बनाता है "

Wednesday 23 October 2013

Jai Mata Di G

मैया जी के चरणों मे ठिकाना चाहिए |
बेटा जो बुलाए माँ को आना चाहिए ||

JAY SHRI KRISHNA

Life goes on.....
Whether you choose to move on and
take a chance in the unknown.
Or stay behind, locked in the past,
thinking of what could’ve been.
Stop worrying about
what you have to
loose and start,
Focusing on what you
have to gain.
Never give up.
There is no such thing as an ending.
Just a new beginning.
Life is 10% of what
happens to you and
90% of how you
respond to it.

The 3 C’s of life:
CHOICE
CHANCES
CHANGES
You must make a
Choice to take a Chance
or your life will never
Change.
Live each day as if it’s your last

 ENJOY YOUR LIFE

JAY SHRI KRISHNA

Tuesday 22 October 2013

करवा चौथ :


करवा चौथ : चन्द्रोदय...रात ,8, बज कर ,58, मिनट पर चंद्रमा का उदय होगा
कार्तिक मास कि चतुर्थी के दिन विवाहित महिलाओं द्वारा करवा चौथ का व्रत किया जाता है। करवा का अर्थात मिट्टी के जल-पात्र कि पूजा कर चंद्रमा को अर्ध्य देने का महत्व हैं। इसीलिए यह व्रत करवा चौथ नाम से जाना जाता हैं। इस दिन पत्नी अपने पति की दीर्घायु के लिये मंगलकामना और स्वयं के अखंड सौभाग्य रहने कि कामना करती हैं।
“जो चंद्रमा में पुरुषरूपी ब्रह्मा कि उपासना करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, उसे जीवन में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता। उसे लंबी और पूर्ण आयु कि प्राप्ति होती हैं।,,
करवा चौथ : पूजन सामग्री की सूची
करवा चौथ एक नारी पर्व है। इस व्रत को सौभाग्यवती महिलाएं करती हैं। इस व्रत में प्रमुखतः गौरी व गणेश का पूजन किया जाता है। जिसमें पूजन सामग्री का भी विशेष ध्यान रखा जाता है।
1. चंदन 2. शहद 3. अगरबत्ती 4. पुष्प 5. कच्चा दूध 6. शक्कर 7. शुद्ध घी
8. दही 9. मिठाई 10. गंगाजल 11. कुंकू 12. अक्षत (चावल) 13. सिंदूर
14. मेहंदी 15. महावर 16. कंघा 17. बिंदी 18. चुनरी 19. चूड़ी 20. बिछुआ
21. मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन 22. दीपक 23. रुई 24. कपूर 25. गेहूं
26. शक्कर का बूरा 27. हल्दी 28. पानी का लोटा
29. गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी
30. लकड़ी का आसन 31. चलनी 32. आठ पूरियों की अठावरी 33. हलुआ
34. दक्षिणा (दान) के लिए पैसे, इ‍त्यादि।
करवा चौथ की पौराणिक व्रत कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।
शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।
सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो।
इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है।
वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।
उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सुईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।
एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सुई ले लो, पिय सुई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।
इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है।सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।
अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्री गणेश-श्री गणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।
हे श्री गणेश- मां गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले..

Friday 18 October 2013

जिन्दगी में सीखने कि लिए सदैव तत्पर रहना चाहिये.

जिन्दगी में सीखने कि लिए सदैव
तत्पर रहना चाहिये. एक ट्रक ड्राइवर अपने सामान
डिलेवरी करने के लिए मेंटल
हॉस्पिटल गया. सामान डिलेवरी के
पश्चात वापस लौटते समय उसने
देखा कि उसके ट्रक का एक
पहिया पंचर हो गया. ड्राइवर ने स्टेपनी निकाल कर
पहिया खोला पर गलती से उसके
हाथ से पहिये कसने के चारों बोल्ट
पास की गहरी नाली में गिर गए
जहाँ से निकालना संभव न था. अब
ड्राइवर बहुत ही परेशान हो गया कि वापस कैसे जाए. इतने में पास से मेंटल हॉस्पिटल
का एक मरीज गुजरा. उसने ड्राइवर से
कि क्या बात है. ड्राइवर ने मरीज
को बहुत ही हिकारत से देखते हुए
सोच कि यह पागल क्या कर लेगा.
फिर भी उसने मरीज को पूरी बात बता दी. मरीज ने ड्राइवर के ऊपर हँसते हुए
कहा कि तुम
इतनी छोटी समस्या का समाधान
भी नहीं कर सकते हो और इसीलिये
तुम ड्राइवर ही हो. ड्राइवर को एक पागलपन के मरीज से
इस प्रकार का संबोधन
अच्छा नहीं लगा और उसने मरीज से
चेतावनी भरे शब्दों में पूछा कि तुम
क्या कर सकते हो? मरीज ने जवाब दियाकि बहुत
ही साधारण बात है. बाकी के तीन
पहियों से एक एक बोल्ट निकाल
कर पहिया कस लो और फिर
नजदीक की ऑटो परत की दुकान के
पास जाकर नए बोल्ट खरीद लो. ड्राइवर इस सुझाव से बहुत
ही प्रभावित हुआ और उसने मरीज
से पूछा कि तुम इतने बुद्धिमान
हो फिर इस हॉस्पिटल में क्यों हो? मरीज ने जवाब दिया कि, "मैं
सनकी हूँ पर मूर्ख नहीं." कोई आश्चर्य की बात नहीं कि कुछ
लोग ट्रक ड्राइवर की तरह व्यवहार
करते हैं, सोचते हैं कि दूसरे लोग मूर्ख
हैं. अतः हम सब ज्ञानी और पढ़ें
लिखे हैं, पर निरीक्षण करें
कि हमारे आस् पास इस प्रकार के सनकी व्यक्ति भी रहते हैं जिनसे
ढेर सारे व्यावहारिक जीवन के नुस्खे
मिल सकते हैं और
जो हमारी बुद्धिमत्ता को ललकारते
रहेंगे. कहानी से सीख : कभी भी यह न
सोचे कि आपको सब कुछ आता है
और दूसरे लोगों को उनके
बाहरी आवरण / दिखावट के आधार
पर उनके ज्ञान का अंदाज़ न
लगाये.

Thursday 17 October 2013

Jai Mata Di :: Jai Mata Di महामाया देवी अमरनाथ


Jai Mata Di :: Jai Mata Di
महामाया देवी
अमरनाथ
कश्मीर
उत्तर भारत

प्रसिद्ध अमरनाथ स्थित महामाया शक्तिपीठ हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल और प्रधान 51 शक्तिपीठों में से एक हैं. पौराणिक कथानुसार भगवान शिव जब माता सती के मृत शरीर को लेकर ब्रह्माण्ड भ्रमण कर रहे थे तब भगवती सती के शरीर से उनका गला इसी पवित्र स्थान पर गिर पड़ा था. माता सती यहां महामाया रूप में जबकि भगवान भोलेनाथ त्रिसंध्येश्वर भैरव रूप में विद्यमान हैं. अमरनाथ की इस पवित्र गुफा में जहां भगवान शिव के हिमलिंग का दर्शन होता है वहीं हिमनिर्मित एक पार्वतीपीठ भी बनता है. यहीं पार्वतीपीठ महामाया शक्तिपीठ के रूप में मान्य है. श्रावण पूर्णिमा को अमरनाथ के दर्शन के साथ-साथ यह शक्तिपीठ भी दिखाई देता है.
महामाया शक्तिपीठ में दर्शन-पूजन का अपना एक अलग महत्व है. यहां भगवती सती के अंग तथा अंगभूषण की पूजा होती है. आस्थावान भक्तों में मान्यता है कि जो यहां भक्ति और श्रद्धापूर्वक भगवती महामाया के साथ-साथ अमरनाथ वासी भगवान भोलेनाथ के हिमलिंग रूप की पूजा करता है, वह इस लोक में सारे सुखों का भोगकर शिवलोक में स्थान प्राप्त करता है.

There are many occasions when we take the name Brahma, Vishnu and Mahesh all together. I asked myself why are they called the power of trinity. We also refer to them as one.

There are many occasions when we take the name Brahma, Vishnu and Mahesh all together. I asked myself why are they called the power of trinity. We also refer to them as one.

Brahma is known as the  Creator and Generator
Vishnu is known as the Protector and Operator
Shiva is known as the Destroyer
All three make the power of one GOD.

 I tried to look at it from a different perspective.

I would like to understand, how are they referred to as the form of God.

I tried to find out the literal meaning of Brahma, Vishnu and Mahesh.

Let’s look only at the Names :

Brahma, the creator:

We also refer the universe as the Brahmaand,

Vishnu, the sustainer or the protector:

We also know the lord Vishnu as All pervasive, but there is a hindi word which is Similar to Vishnu, which is the word Vishwa.

Vishwa literally translated means All or Entire.

Mahesh or Lord Shiva, the destroyer:

Mahesh literally means the ruler.

If we put the literal translation of Brahma, Vishnu and Mahesh together, it becomes:

The universe, entire or all, the ruler. Which means:
The ruler of the entire universe or the ruler of all the universe.

Well let us look at another perspective:

Brahma, still considered as the universe, which we call the Brahmaand!

Vishnu is the sustainer and Mahesh literally translated as the ruler.

Let’s consider the universe as a living being.

What really sustains our body? It’s the soul or the energy.

Vishnu can be regarded as the soul of the universe.

Mahesh being the ruler.

All three together becomes:

Universe, Soul or Energy, Ruler

I can interpret it like:

The ruler and the soul of the universe

OR

The ruler of the soul and the universe

OR

The ruler of the soul of the universe

Well, I am not saying that these are the exact meanings, but I interpreted it in this way to relate God with Brahma, Vishnu and Mahesh.

GOD BLESS ALL

Tuesday 15 October 2013

om sam sarasvatyai namah

om sam sarasvatyai namah

The goddess Saraswati is often depicted as a beautiful woman dressed in pure white, often seated on a white lotus, which symbolizes that she is founded in the experience of the absolute truth. Thus, she not only has the knowledge but also the experience of the highest reality. She is mainly associated with the color white, which signifies the purity of true knowledge. Occasionally, however, she is also associated with the colour yellow, the colour of the flowers of the mustard plant that bloom at the time of her festival in the spring. Unlike the goddess Lakshmi, Saraswati is adorned with simple jewels and gold, representing her preference of knowledge over worldly material things.

She is generally shown to have four arms, which represent the four aspects of human personality in learning: mind, intellect, alertness, and ego. Alternatively, these four arms also represent the four Vedas, the primary sacred books for Hindus. The Vedas, in turn, represent the three forms of literature:

Poetry — the Rigveda contains hymns, representing poetry.
Prose — Yajurveda contains prose.
Music — Samaveda represents music.

In the Rigveda, Saraswati is a river as well as its personification as a goddess. In the post-Vedic age, she began to lose her status as a river goddess and became increasingly associated with literature, arts, music, etc. In Hinduism, Saraswati represents intelligence, consciousness, cosmic knowledge, creativity, education, enlightenment, music, the arts, eloquence and power. Hindus worship her not for "academic knowledge", but for "divine knowledge" essential to achieve moksha. Saraswati, the goddess of knowledge and arts, represents the free flow of wisdom and consciousness. She is the mother of the Vedas, and chants to her, called the 'Saraswati Vandana' often begin and end Vedic lessons. Saraswati is the daughter of Lord Shiva and Goddess Durga. It is believed that goddess Saraswati endows human beings with the powers of speech, wisdom and learning. She has four hands representing four aspects of human personality in learning: mind, intellect, alertness and ego. She has sacred scriptures in one hand and a lotus – the symbol of true knowledge – in the second. With her other two hands she plays the music of love and life on a string instrument called the veena. She is dressed in white – the symbol of purity – and rides on a white swan – symbolizing Sattwa Guna or purity and discrimination. Saraswati is also a prominent figure in Buddhist iconography - the consort of Manjushri. The learned and the erudite attach greater importance to the worship of goddess Saraswati

JAY MAA SARASWATI

Monday 14 October 2013

एक लड़की कार चला रही थी और पास में उसके पिताजी बैठे थे.
राह में एक भयंकर तूफ़ान आया और लड़की ने पिता से पूछा -- अब हम क्या करें?
पिता ने जवाब दिया -- कार चलाते रहो.
तूफ़ान में कार चलाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था और तूफ़ान और भयंकर
होता जा रहा था.
अब मैं क्या करू ? -- लड़की ने पुनः पूछा.
कार चलाते रहो. -- पिता ने पुनः कहा.
थोड़ा आगे जाने पर लड़की ने देखा की राह में कई वाहन तूफ़ान की वजह से रुके हुए थे. उसने फिर अपने पिता से कहा -- मुझे कार रोक देनी चाहिए.
मैं मुश्किल से देख पा रही हूँ. यह भयंकर है और प्रत्येक ने अपना वाहन रोक दिया है. उसके पिता ने फिर निर्देशित किया -- कार रोकना नहीं. बस चलाते रहो.
अब तूफ़ान ने बहुत ही भयंकर रूप धारण कर लिया था किन्तु लड़की ने कार
चलाना नहीं रोका और अचानक ही उसने देखा कि कुछ साफ़ दिखने लगा है. कुछ किलो मीटर आगे जाने के पश्चात लड़की ने देखा कि तूफ़ान थम गया और सूर्य निकल आया.
अब उसके पिता ने कहा -- अब तुम कार रोक सकती हो और बाहर आ सकती हो.
लड़की ने पूछा -- पर अब क्यों?
पिता ने कहा -- जब तुम बाहर आओगी तो देखोगी कि जो राह में रुक गए थे, वे
अभी भी तूफ़ान में फंसे हुए हैं. चूँकि तुमने कार चलाने के प्रयत्न नहीं छोड़ा, तुम तूफ़ान के बाहर हो.
यह किस्सा उन लोगों के लिए एक प्रमाण है जो कठिन समय से गुजर रहे हैं.
मजबूत से मजबूत इंसान भी प्रयास छोड़ देते हैं.
किन्तु प्रयास कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए. निश्चित ही जिन्दगी के कठिन समय गुजर जायेंगे और सुबह के सूर्य की भांति चमक आपके जीवन में पुनः आयेगी.

Sunday 13 October 2013

●►माता जी के अन्यन भक्तो , आज नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है.

                          ●►माता जी के अन्यन भक्तो , आज नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है.









दुर्गा मईया जगत के कल्याण हेतु नौ रूपों में प्रकट हुई और इन रूपों में अंतिम रूप है देवी सिद्धिदात्री माता का, जय माता दी

देवी प्रसन्न होने पर सम्पूर्ण जगत की रिद्धि सिद्धि अपने भक्तों को प्रदान करती हैं. देवी सिद्धिदात्री का रूप अत्यंत सौम्य है, देवी की चार भुजाएं हैं दायीं भुजा में माता ने चक्र और गदा धारण किया है, मां बांयी भुजा में शंख और कमल का फूल है.
मां सिद्धिदात्री कमल आसन पर विराजमान रहती हैं, मां की सवारी सिंह हैं. देवी ने सिद्धिदात्री का यह रूप भक्तों पर अनुकम्पा बरसाने के लिए धारण किया है. देवतागण, ऋषि-मुनि, असुर, नाग, मनुष्य सभी मां के भक्त हैं. देवी जी की भक्ति जो भी हृदय से करता है मां उसी पर अपना स्नेह लुटाती हैं.
●►मां का ध्यान करने के लिए आप“सिद्धगन्धर्वयक्षाघरसुरैरमरैरपि सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी..” इस मंत्र से स्तवन कर सकते हैं.........
शेयर करे ताकि आपकी वजह से कोई और भगत भी माँ का नाम ले सके

HAPPY DASARA TO ALL

May goddess Durga destroy all evil around you and
Fill your life with happiness and prosperity

HAPPY DASARA TO ALL

There are two important stories behind celebration of Dussehra festival in India. One story is associated with Lord Ram and another is associated with Goddess Durga. The festival of Dussehra signifies the victory of good over evil. Read on to know more about the significance and celebration of Dussehra festival.

Dasara  also known as Vijaya Dashami, Dashahara, Navaratri, Durgotdsav… is one of the very important & fascinating festivals of India.

Word DASARA is derived from Sanskrit words “Dasha” & “hara” meaning removing the ten (10). This is the most auspicious festival in the Dakshinaayana or in the Southern hemisphere motion of the Sun.   In Sanskrit, 'Vijaya' means Victory and 'Dashami' means 10th day.

Dussehra is also called Vijayadashami and is celebrated as victory of Goddess Durga over the demon Mahisasura.

In Hindu scriptures, Mahishasura was an asura.

Mahishasura's father Rambha was king of the asuras, and he once fell in love with a water buffalo (Princess Shyamala, cursed to be a buffalo); Mahishasura was born out of this union. He is, therefore, able to change between human and buffalo form at will (mahisha is Sanskrit word for buffalo).
The Devas and Asuras often wage wars against each other. In one such war, Rambha was killed by Indra. As Mahishasura grew up, he came to know how his father died. He collected a band of loyal soldiers and started terrorising Heaven (Swarga Loka). He invaded heaven, defeating Indra, and drove all the Devas out of heaven. Thus his revenge was complete.
The Devas formed a conclave to decide how to defeat this invincible asura. Since he was invincible to all men, they created his nemesis in the form of a young woman, Durga (a form of Shakti or Parvati). She combined the powers of all the devas in a beautiful form. After that, she marched against the demons on her mount, the Lion (wrongly depicted as a Tiger).

Mahishasura, upon hearing about her, sent his army to defeat and capture her. Durga kills all of the demons and challenges Mahishasura to a one-to-one fight. After nine days of fierce fighting (Mahishasura gave Durga a stiff opposition, as legend says of Durga re-gaining her spent energy by drinking honey), Durga finally manages to kill the powerful Mahishasura on the tenth day of the waxing moon. Durga is, therefore, called Mahishasuramardini (literally the slayer of the buffalo demon), the destroyer of Mahishasura.

Saturday 12 October 2013

3 प्रश्न


3 प्रश्न
अकबर का नाम तो आप सबने सुना ही होगा। भारत में अंग्रेजों से पहले मुगलों का राज्य था और अकबर एक मुगल शासक था। उसके नवरत्नों में उसका मन्त्री बीरबल भी था। वह बहुत बुद्धिमान था। एक बार अकबर दरबार में यह सोच कर आये कि आज बीरबल को भरे दरबार में शरमिन्दा करना है। इसके लिए वो बहुत तैयारी करके आये थे। आते ही अकबर ने बीरबल के सामने अचानक 3 प्रश्न उछाल दिये। प्रश्न थे- ‘ईश्वर कहाँ रहता है? वह कैसे मिलता है?
और वह करता क्या है?’’ बीरबल इन प्रश्नों को सुनकर सकपका गये और बोले- ‘‘जहाँपनाह! इन प्रश्नों के उत्तर मैं कल आपको दूँगा।" जब बीरबल घर पहुँचे तो वह बहुत उदास थे। उनके पुत्र ने जब उनसे पूछा तो उन्होंने बताया- ‘‘बेटा! आज अकबर बादशाह ने मुझसे एक साथ तीन प्रश्न ‘ईश्वर कहाँ रहता है? वह कैसे मिलता है? और वह करता क्या है?’ पूछे हैं। मुझे उनके उत्तर सूझ नही रहे हैं और कल दरबार में इनका उत्तर देना है।’’ बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘पिता जी! कल आप मुझे दरबार में अपने साथ ले चलना मैं बादशाह के प्रश्नों के उत्तर दूँगा।’’ पुत्र की हठ के कारण बीरबल अगले दिन अपने पुत्र को साथ लेकर दरबार में पहुँचे। बीरबल को देख कर बादशाह अकबर ने कहा- ‘‘बीरबल मेरे प्रश्नों के उत्तर दो। बीरबल ने कहा- ‘‘जहाँपनाह आपके प्रश्नों के उत्तर तो मेरा पुत्र भी दे सकता है।’’ अकबर ने बीरबल के पुत्र से पहला प्रश्न पूछा- ‘‘बताओ! ‘ईश्वर कहाँ रहता है?’’ बीरबल के पुत्र ने एक गिलास शक्कर मिला हुआ दूध बादशाह से मँगवाया और कहा- जहाँपनाह दूध कैसा है? अकबर ने दूध चखा और कहा कि ये मीठा है। परन्तु बादशाह सलामत या आपको इसमें शक्कर दिखाई दे रही है। बादशाह बोले नही। वह तो घुल गयी। जी हाँ, जहाँपनाह! ईश्वर भी इसी प्रकार संसार की हर वस्तु में रहता है। जैसे शक्कर दूध में घुल गयी है परन्तु वह दिखाई नही दे रही है। बादशाह ने सन्तुष्ट होकर अब दूसरे प्रश्न का उत्तर पूछा- ‘‘बताओ! ईश्वर मिलता केसे है?’’ बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह थोड़ा दही मँगवाइए।’’ बादशाह ने दही मँगवाया तो बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! क्या आपको इसमं मक्खन दिखाई दे रहा है। बादशाह ने कहा- ‘‘मक्खन तो दही में है पर इसको मथने पर ही दिखाई देगा।’’ बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! मन्थन करने पर ही ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं।’’ बादशाह ने सन्तुष्ट होकर अब अन्तिम प्रश्न का उत्तर पूछा- ‘‘बताओ! ईश्वर करता क्या है?’’ बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘महाराज! इसके लिए आपको मुझे अपना गुरू स्वीकार करना पड़ेगा।’’ अकबर बोले- ‘‘ठीक है, तुम गुरू और मैं तुम्हारा शिष्य।’’ अब बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह गुरू तो ऊँचे आसन पर बैठता है और शिष्य नीचे।’’ अकबर ने बालक के लिए सिंहासन खाली कर दिया और स्वयं नीचे बैठ गये। अब बालक ने सिंहासन पर बैठ कर कहा- ‘‘महाराज! आपके अन्तिम प्रश्न का उत्तर तो यही है।’’ अकबर बोले- ‘‘क्या मतलब? मैं कुछ समझा नहीं।’’ बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! ईश्वर यही तो करता है। पल भर में राजा को रंक बना देता है और भिखारी को सम्राट बना देता है।

●►अष्टमी , जय महागौरी !!

सोणी मैरी मायी है !!
●►अष्टमी , जय महागौरी !!
●►देवी दुर्गा के नौ रूपों में महागौरी आठवीं शक्ति स्वरूपा हैं. दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की पूजा अर्चना की जाती है. महागौरी आदी शक्ति हैं इनके तेज से संपूर्ण विश्व प्रकाश-मान होता है इनकी शक्ति अमोघ फलदायिनी हैम माँ महागौरी की अराधना से भक्तों को सभी कष्ट दूर हो जाते हैं तथा देवी का भक्त जीवन में पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी बनता है.
दुर्गा सप्तशती (Durga Saptsati) में शुभ निशुम्भ से पराजित होकर गंगा के तट पर जिस देवी की प्रार्थना देवतागण कर रहे थे वह महागौरी हैं. देवी गौरी के अंश से ही कौशिकी का जन्म हुआ जिसने शुम्भ निशुम्भ के प्रकोप से देवताओं को मुक्त कराया. यह देवी गौरी शिव की पत्नी हैं यही शिवा और शाम्भवी के नाम से भी पूजित होती हैं. —
वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोदया॥

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Friday 11 October 2013

2. चामुंडा देवी


हिन्दू श्रद्धालुओं का मुख्य केंद्र और 51 शक्तिपीठों में एक चामुंडा देवी देव भूमि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है. बानेर नदी के तट पर बसा यह मंदिर महाकाली को समर्पित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान शंकर माता सती को अपने कंधे पर उठाकर घूम रहे थे, तब इसी स्थान पर माता का चरण गिर पड़ा था और माता यहां शक्तिपीठ रूप में स्थापित हो गई. चामुंडा देवी मंदिर भगवान शिव और शक्ति का स्थान है. भक्तों में मान्यता है कि यहां पर शतचंडी का पाठ सुनना और सुनाना श्रेष्ठकर है और इसे सुनने और सुनाने वाले का सारा क्लेश दूर हो जाता है.
दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार चण्ड-मुण्ड नामक दो महादैत्य देवी से युद्ध करने आए तो, देवी ने काली का रूप धारण कर उनका वध कर दिया. माता देवी की भृकुटी से उत्पन्न कलिका देवी ने जब चण्ड-मुण्ड के सिर देवी को उपहार स्वरुप भेंट किए तो देवी भगवती ने प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया कि तुमने चण्ड -मुण्ड का वध किया है, अतः आज से तुम संसार में चामुंडा के नाम से विख्यात हो जाओगी. मान्यता है कि इसी कारण भक्तगण देवी के इस स्वरुप को चामुंडा रूप में पूजते हैं.

●►7 मां दुर्गा के सातवें स्वरूप या शक्ति को कालरात्रि


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वाम पादोल्ल सल्लोहलता कण्टक भूषणा |
वर्धन मूर्ध ध्वजा कृष्णा कालरात्रि भर्यङ्करी ||
दुर्गा पूजा के सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि की पूजा वंदना इस मंत्र से करना चाहिए.
नवरात्री की सप्तमी तिथि को आदिशक्ति दुर्गा की 9 शक्तियों की सातवीं स्वरूपा और अन्धकार का नाश कर प्रकाश प्रदान करने वाली मां कालरात्रि की पूजा होती है. भय का विनाश करने वाली और काल से अपने भक्तों की रक्षा करने वाली मां कालरात्रि का स्वरुप बड़ा ही भयानक है, लेकिन ये शरणागतों को सदैव शुभ फल देनेवाली मानी जाती है, जिस कारण माता को शुभंकरी भी कहा जाता है. लौकिक स्वरुप में माता के शरीर का रंग अमावस्या रात की तरह एकदम काला है. सिर के बाल बिखरे हैं. इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड के समान सदृश्य गोल है. गले में विद्युत् की तरह चमकने वाली माला है. इनकी नासिका से अग्नि की भयंकर ज्वाला निकलती रहती है. दुर्गा पूजा में सप्तमी की पूजा का बड़ा महत्व होता है क्योंकि देवी का यह रूप सिद्धि प्रदान करने वाला है. यह दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. शास्त्रानुसार इस दिन पहले कलश की पूजा करनी चाहिए, फिर नवग्रह, दशदिक्पाल, माता के परिवार में उपस्थित देवी-देवताओं और फिर माता कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए. इससे भक्तों को मनोवांछित फल मिलता है.
जय माता दी

माँ आपकी मनोकामना पूर्ण करे ।

Thursday 10 October 2013

श्रीदुर्गाष्टोत्तार्शत्ननाम्स्त्रोतम


श्रीदुर्गाष्टोत्तार्शत्ननाम्स्त्रोतम
शंकर जी पार्वती जी से कहते हैं ---कमलानने ! अष्टोत्तरशत नाम का वर्णन करता हूँ , सुनो I जिसके प्रसाद (पाठ या श्रवण ) मात्र से परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती है II
१ ॐ सती
२ साध्वी
३ भवप्रीता (भगवान शिव पर प्रीति रखनेवाली )
४ भवानी
५ भवमोचनी(संसार बंधन से मुक्त करने वाली )
६ आर्या
७ दुर्गा
८ जया
९ आद्या
१० त्रिनेत्रा
११ शूलधारिणी
१२ पिनाकधारिणी
१३ चित्रा
१४ चंडघण्टा
१५ महातपा:(भरी तपस्या करने वाली )
१६ मन: (मनन - शक्ति)
१७ बुद्धि: (बोधशक्ति )
१८ अहंकारा (अहंता का आश्रय )
१९ चित्तरूपा
२०चिता
२१ चिति:(चेतना )
२२ सर्व- मन्त्र मयी
२३ सत्ता (सत् -स्वरूपा )
२४ सत्यानन्दस्वरूप्नी
२५ अनन्ता (जिस्केस्वरूप कहीं अंत नहीं )
२६ भाविनी(सबको उत्पन्न करने वाली )
२७ भाव्या ( भावना एवं ध्यान करने योग्य )
२८ भव्या ( कल्याणरूपा )
२९ अभव्या ( जिस बढ कर भव्य कहीं है नहीं )
३० सदा -गति:
३१ शाम्भवी (शिव प्रिय )
३२ देव माता
३३ चिंता
३४ रत्न प्रिया
३५सर्व विद्या
३६ दक्ष कन्या
३७ दक्ष यज्ञविनाशनी
३८ अपर्णा ( तपस्या के समय पत्तों को भी न खाने वाली )
३९ अनेक वर्णा (अनेक रंगों वाली)
४० पाटला (लाल रंग वाली )
४१ पाटलावती ( गुलाब के फूल या लाल फूल धारण करने वाली )
४२ पट्टाम्बर परिधारना ( रेशमी वस्त्र पहनने वाली )
४३ कल मंज्ज़िर रंज्जनी ( मदुर धवनी करने वाले मंज्ज़िर को धारण करके प्रसन्न रहने वाली )
४४ अमेयविक्रमा ( असीम परक्रमवाली )
४५ क्रूरा ( दैत्यों के प्रति कठोर )
४६ सुंदरी
४७ सुरसुन्दरी
४८ वनदुर्गा
४९ मात न्ड्गी
५० मतंगमुनि पूजिता
५१ ब्राह्मी
५२ माहेश्वरी
५३ ऐन्द्री
५४ कौमारी
५५ वैष्णवी
५६ चामुंडा
५७ वाराही
५८ लक्ष्मी:
५९ पुरुषाकृति :
६० विमला
६१ उत्कर्शिनी
६२ ज्ञाना
६४ नित्या
६५ बुद्धिदा
६६ बहुला
६७ बहुलप्रेमा
६८ सर्ववहानवाहना
६९ निशुम्भशुम्भहननी
७० महिषासुरमर्दिनी

७१ मधुकैटभह्न्त्री
७२ चंडमुंडविनाशनी
७३ सर्वासुरविनाशा
७४ सर्वदानवघातिनी
७५ सर्वशास्त्र्मायी
७६ सत्या
७७ सर्वास्त्रधारिणी
७८ अनेकशास्त्रहस्ता
७९ अनेकास्त्रधारिणी
८० कुमारी
८१ एक कन्या
८२ कैशौरी
८३ युवती
८४ यति:
८५ अप्रौढा
८६ प्रौढ़ा
८७ वृद्दमाता
८८ बलप्रदा
८९ महोदरी
९० मुक्तकेशी
९१ घोररूपा
९२ महाबली
९३ अग्निज्वाला
९४ रौद्रमुखी
९५ कालरात्रि:
९६ तपस्वनी
९७ नारायणी
९८ भद्रकाली
९९ विष्णुमाया
१०० जलोदरी
१०१ शिवदूती
१०२ कराली
१०३ अनन्ता ( विनाशरहिता )
१०४ परमेश्वरी
१०५ कत्यानी
१०६ सावित्री
१०७ प्रत्यक्षा
१०८ ब्रह्मवादिनी
• जो भगवती दुर्गा के इन 108 नामों का नित्य पाठ करता है उसके लिए तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य (अप्राप्य)नहीं रहता । इस लोक में रहते हुए वह धन ,धान्य,पुत्र,अश्व एवं हाथी आदि ऐश्वर्य का भोग करते हुए धर्म ,अर्थ , काम व मोक्ष को प्राप्त करता है तथा अन्त में शाश्वत (नित्य) मुक्ति को प्राप्त होता है ।

|| श्रद्धा से प्रभु को पुकारें ||




|| श्रद्धा से प्रभु को पुकारें ||
भगवान गीता [ ४ / ३९ ] में कहते हैं " जितेन्द्रिय , साधनपरायण और श्रद्धावान मनुष्य ज्ञान को प्राप्त होता है तथा ज्ञान को प्राप्त होकर वह बिना विलम्ब के - तत्काल ही भगवतप्राप्तिरूप परम शान्ति को प्राप्त हो जाता है |" अर्थात श्रद्धावान को ही ज्ञान प्राप्त होता है |श्रद्धा के अनुसार ही तत्परता होती है | जिस किसी काम में तत्परता नहीं होती , उसमें विश्वास की कमी है | प्रथम तो यह विश्वास होना ही चाहिए की ईश्वर है | फिर यह की वह सर्वत्र है , सर्वान्तर्यामी हैं | फिर उन पर दृढ विश्वास करना चाहिए की इनसे बढ़कर और कुछ नहीं है | बहुत भारी निर्भयता , शान्ति , प्रसन्नता प्रत्यक्ष आ जाती है | यह हृदय से समझलें की भगवान के समान ही जब कोई वस्तु नहीं है , फिर इनसे बढकर कोई कैसे हो सकता है ? यह समझने के बाद भगवान का चिंतन छूट ही नहीं सकता [ गीता १५ / १९ ] | तथा जो भगवान का निरंतर चिंतन करता है , भगवान सब प्रकार से उसकी रक्षा करते हैं [ गीता ९ / २२ ] | लौकिक योगक्षेम की तो बात ही क्या , प्रभु पारलौकिक योगक्षेम वहन करते हैं | हर समय पास रहते हैं | माता बालक की जैसे रक्षा करती है , उससे बढकर रक्षा करते हैं , और अपनी प्राप्ति करा देते हैं |
प्रभु की जिस समय विस्मृति हो उस समय एकांत में पूरी श्रद्धा और विनय भाव से उनसे प्रार्थना करें - हे नाथ ! आपके रहते मेरी यह दशा , मैं निश्चय ही पापी हूँ , मेरा अंत:करण मलिन है , मैं अपराधी हूँ , इसीलिए तो आपमें श्रद्धा और प्रेम की कमी है ? आप शरणागत की रक्षा करते हैं | आप तो पतितपावन , दया के सागर हैं | मैं विचार - विवेक के द्वारा आपकी शरण होना चाहता हूँ , किन्तु मेरा मन सुनता नहीं है | इसमें जो श्रद्धा - प्रेम की कमी है , वह तो आपकी कृपा से ही पूर्ण होगी | हे नाथ ! बस यही प्रार्थना है की आपकी दया सर्वत्र मुझको प्रतीत होती रहे | आपकी स्मृति हर समय मुझे होती रहे | हे नाथ ! मैं बल चाहता हूँ , मदद चाहता हूँ जिससे निरंतर चिंतन बना रहे | इस प्रकार एकांत में दिल खोलकर प्रभु से प्रार्थना करें | वास्तव में सच्ची आवाज हो तो करूणासागर तक अवश्य पहुंचेगी | कहते हैं की चींटी के पाँव में बंधे घुँघरू की आवाज भी प्रभु सुन लेते हैं | सबसे श्रेष्ठ मनुष्य शरीर पाकर , सर्वश्रेष्ठ आर्यावर्त देश , सब प्रभु की कृपा से प्राप्त है , फिर भी अगर प्रभु की प्राप्ति इस जन्म में नहीं हुई तो हमारा जन्म व्यर्थ समझा जाएगा | गीता का ज्ञान हमें यहाँ सर्वत्र उपलब्ध है , भगवन्नाम का माहात्म्य महात्मा डंके की चोट बताते हैं |
जब - जब राग , द्वेष , ममता , अहंकार , मान , बडाई , प्रतिष्ठा आकार दबाएँ तो हे नाथ ! हे नाथ ! पुकारें | हे नाथ ! मुझे माया के डाकुओं ने घेर लिया है , मैं अनाथ की तरह मारा जा रहा हूँ | आपके बिना बचानेवाला कोई नहीं है | इस प्रकार हृदय से [ आर्त्त भाव से ] की गई सच्ची प्रार्थना प्रभु अवश्य सुनते हैं | इसलिए अपने द्वारा अपना संसार - समुद्र से उद्धार करे और अपने को अधोगति में न डालें , क्योंकि यह मनुष्य आप ही तो अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु है [ गीता ६ / ५ ] | विचार करने पर कोई भी समझ सकता है की त्याग से शान्ति मिलती है , केवल त्याग से परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है | जिसमें जितना त्याग है उतना ही वह परमात्मा के नजदीक है | कबीरदासजी कहते हैं " कंचन तजना सहज है , सहज त्रिया का नेह | मान , बडाई , ईर्ष्या , दुर्लभ तजना एह ||" महात्मा लोग यह कहते हैं , मान को विष और अपमान को अमृत समझो |
मनुष्य नाम के लिए प्राणों का त्याग कर देता है , कीर्ति के लिए मर मिटता है | कीर्ति से बढकर ' ईर्ष्या ' है | कंचन , कामिनी , मान , बडाई आदि की जड राग है | ईर्ष्या की जड द्वेष है | राग - द्वेष की जड अहंकार है | अहंकार की जड अविवेक , अज्ञान , अविद्या है | इनका नाश प्रभु की शरण से होता है [ ७ / १४ ] | श्रद्धा से ही प्रभु की प्राप्ति संभव है [ १२ / २ ] | अतिशय श्रद्धायुक्त योगी , जो अंतरात्मा से प्रभु को निरंतर भजता है , वह परम श्रेष्ठ योगी माना गया है [ ६ / ४७ ] |
|| इति ||

*** तुलसी एक 'दिव्य पौधा' ***

जय माता दी  जी
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*** तुलसी एक 'दिव्य पौधा' ***

भारतीय संस्कृति में तुलसी के पौधे का बहुत महत्व है और इस पौधे को बहुत पवित्र माना जाता है। ऎसा माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा नहीं होता उस घर में भगवान भी रहना पसंद नहीं करते। माना जाता है कि घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगा कलह और दरिद्रता दूर करता है। इसे घर के आंगन में स्थापित कर सारा परिवार सुबह-सवेरे इसकी पूजा-अर्चना करता है। यह मन और तन दोनों को स्वच्छ करती है। इसके गुणों के कारण इसे पूजनीय मानकर उसे देवी का दर्जा दिया जाता है। तुलसी केवल हमारी आस्था का प्रतीक भर नहीं है। इस पौधे में पाए जाने वाले औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेद में भी तुलसी को महत्वपूर्ण माना गया है। भारत में सदियों से तुलसी का इस्तेमाल होता चला आ रहा है।

* लिवर (यकृत) संबंधी समस्या: तुलसी की 10-12 पत्तियों को गर्म पानी से धोकर रोज सुबह खाएं। लिवर की समस्याओं में यह बहुत फायदेमंद है।
* पेटदर्द होना: एक चम्मच तुलसी की पिसी हुई पत्तियों को पानी के साथ मिलाकर गाढा पेस्ट बना लें। पेटदर्द होने पर इस लेप को नाभि और पेट के आस-पास लगाने से आराम मिलता है।
* पाचन संबंधी समस्या : पाचन संबंधी समस्याओं जैसे दस्त लगना, पेट में गैस बनना आदि होने पर एक ग्लास पानी में 10-15 तुलसी की पत्तियां डालकर उबालें और काढा बना लें। इसमें चुटकी भर सेंधा नमक डालकर पीएं।
* बुखार आने पर : दो कप पानी में एक चम्मच तुलसी की पत्तियों का पाउडर और एक चम्मच इलायची पाउडर मिलाकर उबालें और काढा बना लें। दिन में दो से तीन बार यह काढा पीएं। स्वाद के लिए चाहें तो इसमें दूध और चीनी भी मिला सकते हैं।
* खांसी-जुकाम : करीब सभी कफ सीरप को बनाने में तुलसी का इस्तेमाल किया जाता है। तुलसी की पत्तियां कफ साफ करने में मदद करती हैं। तुलसी की कोमल पत्तियों को थोडी- थोडी देर पर अदरक के साथ चबाने से खांसी-जुकाम से राहत मिलती है। चाय की पत्तियों को उबालकर पीने से गले की खराश दूर हो जाती है। इस पानी को आप गरारा करने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
* सर्दी से बचाव : बारिश या ठंड के मौसम में सर्दी से बचाव के लिए तुलसी की लगभग 10-12 पत्तियों को एक कप दूध में उबालकर पीएं। सर्दी की दवा के साथ-साथ यह एक न्यूट्रिटिव ड्रिंक के रूप में भी काम करता है। सर्दी जुकाम होने पर तुलसी की पत्तियों को चाय में उबालकर पीने से राहत मिलती है। तुलसी का अर्क तेज बुखार को कम करने में भी कारगर साबित होता है।
* श्वास की समस्या : श्वास संबंधी समस्याओं का उपचार करने में तुलसी खासी उपयोगी साबित होती है। शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा पीने से ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है। नमक, लौंग और तुलसी के पत्तों से बनाया गया काढ़ा इंफ्लुएंजा (एक तरह का बुखार) में फौरन राहत देता है।
* गुर्दे की पथरी : तुलसी गुर्दे को मजबूत बनाती है। यदि किसी के गुर्दे में पथरी हो गई हो तो उसे शहद में मिलाकर तुलसी के अर्क का नियमित सेवन करना चाहिए। छह महीने में फर्क दिखेगा।
* हृदय रोग : तुलसी खून में कोलेस्ट्राल के स्तर को घटाती है। ऐसे में हृदय रोगियों के लिए यह खासी कारगर साबित होती है।
* तनाव : तुलसी की पत्तियों में तनाव रोधीगुण भी पाए जाते हैं। तनाव को खुद से दूर रखने के लिए कोई भी व्यक्ति तुलसी के 12 पत्तों का रोज दो बार सेवन कर सकता है।
* मुंह का संक्रमण : अल्सर और मुंह के अन्य संक्रमण में तुलसी की पत्तियां फायदेमंद साबित होती हैं। रोजाना तुलसी की कुछ पत्तियों को चबाने से मुंह का संक्रमण दूर हो जाता है।
* त्वचा रोग : दाद, खुजली और त्वचा की अन्य समस्याओं में तुलसी के अर्क को प्रभावित जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है। नैचुरोपैथों द्वारा ल्यूकोडर्मा का इलाज करने में तुलसी के पत्तों को सफलता पूर्वक इस्तेमाल किया गया है।
तुलसी की ताजा पत्तियों को संक्रमित त्वचा पर रगडे। इससे इंफेक्शन ज्यादा नहीं फैल पाता।
* सांसों की दुर्गध : तुलसी की सूखी पत्तियों को सरसों के तेल में मिलाकर दांत साफ करने से सांसों की दुर्गध चली जाती है। पायरिया जैसी समस्या में भी यह खासा कारगर साबित होती है।
* सिर का दर्द : सिर के दर्द में तुलसी एक बढि़या दवा के तौर पर काम करती है। तुलसी का काढ़ा पीने से सिर के दर्द में आराम मिलता है।
* आंखों की समस्या : आंखों की जलन में तुलसी का अर्क बहुत कारगर साबित होता है। रात में रोजाना श्यामा तुलसी के अर्क को दो बूंद आंखों में डालना चाहिए।
* कान में दर्द : तुलसी के पत्तों को सरसों के तेल में भून लें और लहसुन का रस मिलाकर कान में डाल लें। दर्द में आराम मिलेगा।
* ब्लड-प्रेशर को सामान्य रखने के लिए तुलसी के पत्तों का सेवन करना चाहिए।
* तुलसी के पांच पत्ते और दो काली मिर्च मिलाकर खाने से वात रोग दूर हो जाता है।
* कैंसर रोग में तुलसी के पत्ते चबाकर ऊपर से पानी पीने से काफी लाभ मिलता है।
* तुलसी तथा पान के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर देने से बच्चों के पेट फूलने का रोग समाप्त हो जाता है।
* तुलसी का तेल विटामिन सी, कैल्शियम और फास्फोरस से भरपूर होता है।
* तुलसी का तेल मक्खी- मच्छरों को भी दूर रखता है।
* बदलते मौसम में चाय बनाते हुए हमेशा तुलसी की कुछ पत्तियां डाल दें। वायरल से बचाव रहेगा।
* शहद में तुलसी की पत्तियों के रस को मिलाकर चाटने से चक्कर आना बंद हो जाता है।
* तुलसी के बीज का चूर्ण दही के साथ लेने से खूनी बवासीर में खून आना बंद हो जाता है।
* तुलसी के बीजों का चूर्ण दूध के साथ लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में वृध्दि होती है।

रोज सुबह तुलसी की पत्तियों के रस को एक चम्मच शहद के साथ मिलाकर पीने से स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है। तुलसी की केवल पत्तियां ही लाभकारी नहीं होती। तुलसी के पौधे पर लगने वाले फल जिन्हें अमतौर पर मंजर कहते हैं, पत्तियों की तुलना में कहीं अघिक फायदेमंद होता है। विभिन्न रोगों में दवा और काढे के रूप में तुलसी की पत्तियों की जगह मंजर का उपयोग भी किया जा सकता है। इससे कफ द्वारा पैदा होने वाले रोगों से बचाने वाला और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला माना गया है। किंतु जब भी तुलसी के पत्ते मुंह में रखें, उन्हें दांतों से न चबाकर सीधे ही निगल लें। इसके पीछे का विज्ञान यह है कि तुलसी के पत्तों में पारा धातु के अंश होते हैं। जो चबाने पर बाहर निकलकर दांतों की सुरक्षा परत को नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे दंत और मुख रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।
तुलसी का पौधा मलेरिया के कीटाणु नष्ट करता है। नई खोज से पता चला है इसमें कीनोल, एस्कार्बिक एसिड, केरोटिन और एल्केलाइड होते हैं। तुलसी पत्र मिला हुआ पानी पीने से कई रोग दूर हो जाते हैं। इसीलिए चरणामृत में तुलसी का पत्ता डाला जाता है। तुलसी के स्पर्श से भी रोग दूर होते हैं। तुलसी पर किए गए प्रयोगों से सिद्ध हुआ है कि रक्तचाप और पाचनतंत्र के नियमन में तथा मानसिक रोगों में यह लाभकारी है। इससे रक्तकणों की वृद्धि होती है। तुलसी ब्र्म्ह्चर्य की रक्षा करने एवं यह त्रिदोषनाशक है।

●►माँ दुर्गा के छठे रूप को माँ कात्यायनी

                                            ●►माँ दुर्गा के छठे रूप को माँ कात्यायनी 
 


●►माँ दुर्गा के छठे रूप को माँ कात्यायनी के नाम से पूजा जाता है. महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं. महर्षि कात्यायन ने इनका पालन-पोषण किया तथा महर्षि कात्यायन की पुत्री और उन्हीं के द्वारा सर्वप्रथम पूजे जाने के कारण देवी दुर्गा को कात्यायनी कहा गया.
देवी कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं इनकी पूजा अर्चना द्वारा सभी संकटों का नाश होता है, माँ कात्यायनी दानवों तथा पापियों का नाश करने वाली हैं. देवी कात्यायनी जी के पूजन से भक्त के भीतर अद्भुत शक्ति का संचार होता है. इस दिन साधक का मन ‘आज्ञा चक्र’ में स्थित रहता है. योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है. साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने पर उसे सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं. साधक इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज से युक्त रहता है.
माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है. यह अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं. इनकी चार भुजायें भक्तों को वरदान देती हैं, इनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, तो दूसरा हाथ वरदमुद्रा में है अन्य हाथों में तलवार तथा कमल का फूल है.

●►देवी कात्यायनी के मंत्र :
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

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Tuesday 8 October 2013

●►माँ दुर्गा का पंचम रूप स्कन्दमाता

●►माँ दुर्गा का पंचम रूप स्कन्दमाता
●►माँ दुर्गा का पंचम रूप स्कन्दमाता के रूप में जाना जाता है. भगवान स्कन्द कुमार ( कार्तिकेय )की माता होने के कारण दुर्गा जी के इस पांचवे स्वरूप को स्कंद माता नाम प्राप्त हुआ है. भगवान स्कन्द जी बालरूप में माता की गोद में बैठे होते हैं इस दिन साधक का मन विशुध्द चक्र में अवस्थित होता है. स्कन्द मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजायें हैं, ये दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कन्द को गोद में पकडे हैं और दाहिनी निचली भुजा जो ऊपर को उठी है, उसमें कमल पकडा हुआ है। माँ का वर्ण पूर्णतः शुभ्र है और कमल के पुष्प पर विराजित रहती हैं। इसी से इन्हें पद्मासना की देवी और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है|
माँ स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं| इनकी उपासना करने से साधक अलौकिक तेज की प्राप्ति करता है | यह अलौकिक प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता है| एकाग्रभाव से मन को पवित्र करके माँ की स्तुति करने से दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है|
●►स्कन्दमाता की मंत्र :
सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया |
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ||
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

The Gita – Chapter 2 – Shloka 7

The Gita – Chapter 2 – Shloka 7
इसलिये कायरतारूप दोष से उपहत हुए स्वभाववाला तथा धर्म के विषय में मोहित चित्त हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि जो साधन निश्चित कल्याणकारक हो, वह मेरे लिये कहिये ; क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ, इसलिये आपके शरण हुए मुझको शिक्षा दीजिये ।। ७ ।।
Arjuna spoke unto the Lord:
Please, Dear Lord, I am your disciple, kindly guide and instruct me, for I have taken refuge and shelter in you.

I am confused as to my duties and what is good for me.

I beg you to give me knowledge, wisdom and a clear, logical mind.

Monday 7 October 2013

●►चतुर्थ नवरात्र : ●►देवी कूष्माण्डा

khushmanda…Kusmanda is the fourth phase of the mother Durga. (Ku+Usma+Anda) - that is how the word has been derived. 'Ku' means 'a little'; 'Usma' is warmth, heat or energy and 'Anda' means the cosmic egg or universe. That is from whose fraction of warmth the universe has emanated. So she is justifiably named Kusmanda.
When there was only a void full of darkness, at that time, when even time was not there, the mother Kusmanda created the universe with herSankalpa as a mental projection. Before her advent there was neitherSat nor Asat.
She has her abode in the inner portion of Surya-Loka. Only she could live there and no one else. The hue and luster of her body also is just like that of the Sun glowing and effulgent, incomparable with any other god or goddess-herself being her own match. All the ten quarters are illuminated with her effulgence. Whatever brilliance is observed in the world-in living beings or objects is simply a reflection of her splendor.
She has eight arms. So Astbhuja the name. In her seven hands she holds Kamandalu,bow, arrow, lotus, a jar of nectar, discus, mace, respectively. In her eighth hand there is rosary capable of giving eight Siddhis and nine Nidhis. Her vehicle is lion. Kusmanda in Sanskrit stands for pumpkin, which she likes most as a sacrificial offer. So also she is Kusmanda.
On the fourth day of Navratra, Kusmanda is worshipped. This day the mind of the striver enters and stays in Anahata Cakra. So the striver is required to meditate on this aspect of the Mother with a steady mind and worship her single-mindedly. As a result of her worship the devotees get rid of all ailments and sorrows. The life span, name, strength and health are on the increase. The mother Kusmanda is easy to propitiate. If some body surrenders before her guilelessly, he is sure to reach her Supreme abode.
We should worship her in befitting manner prescribed in the Sastras and be a true devotee of her. Later on the striver has unearthly perceptions and he feels her grace. This miserable world transforms for him into a divine place. Her worship is the best and easiest means to cross the mire of the world. So an aspirant should worship her for his mundane as well as spiritual success.