Sunday 17 November 2013

श्रीमद्भागवत महापुराण * : Jai Shree Krishna

( श्रीमद्भागवत महापुराण - १०/३/४ ) - - [ श्री कृष्ण जन्म ] ( कृपया पूरा पढ़ें ) - -संत पुरुष पहले से ही चाहते थे कि असुरों की बढ़ोतरी न होनें पाये l अब उनका मन सहसा प्रसन्नता से भर गया l जिस समय भगवान् के आविर्भाव का अवसर आया , स्वर्ग में देवताओं की दुन्दुभियाँ अपनें आप बज उठीं l 


                   
                                                                                                                श्रीमद्भागवत महापुराण *

Monday 11 November 2013

श्रीमद्भागवत महापुराण - १०/०३/०३ : Jai Shree Krishna

( श्रीमद्भागवत महापुराण - १०/०३/०३ ) - [ श्री कृष्ण जन्म ]- नदियों का जल निर्मल हो गया था l रात्रि के समय भी सरोवरों में कमल खिल रहे थे l वन में वृक्षों की पंक्तियाँ रंग बिरंगे पुष्पों के गुच्छों से लड़ गयी थीं l कहीं पक्षी चहक रहे थे , तो कहीं भौंरे गुनगुना रहे थे l                                                                                                                                                                                  ..श्रीमद्भागवत महापुराण

श्रीमद्भागवत गीता - १०/०३/ १-२ ) : Jai Shree Krishna

( श्रीमद्भागवत गीता - १०/०३/ १-२ ) - { कृष्ण जन्म } - [ कृपया पूरा पढ़ें ] - - श्री शुकदेव जी कहते हैं --> परीक्षित ! अब समस्त शुभ गुणों से युक्त बहुत सुहावना समय आया l रोहिणी नक्षत्र था l आकाश के सभी नक्षत्र ,ग्रह और तारे शांत -- सौम्य हो रहे थे l दिशाएँ स्वच्छ प्रसन्न थीं l निर्मल आकाश में तारे जगमगा रहे थे l पृथ्वी के बड़े - बड़े नगर , छोटे - छोटे गाँव , अहीरों की बस्तियाँ और हीरे आदि की खानें मंगलमय हो रही थीं l
                                                                                            .गीता .

जो भी काम करना शुरू करे उसे पूरा करके ही छोड़े जय माता दी

एक मकड़ी थी. उसने आराम से रहने के लिए एक शानदार
जाला बनाने का विचार किया और सोचा की इस जाले मे खूब
कीड़ें, मक्खियाँ फसेंगी और मै उसे आहार बनाउंगी और मजे से
रहूंगी . उसने कमरे के एक कोने को पसंद किया और
वहाँ जाला बुनना शुरू किया. कुछ देर बाद आधा जाला बुन कर
तैयार हो गया. यह देखकर वह मकड़ी काफी खुश हुई
कि तभी अचानक उसकी नजर एक बिल्ली पर पड़ी जो उसे
देखकर हँस रही थी.
मकड़ी को गुस्सा आ गया और वह बिल्ली से बोली , ” हँस
क्यो रही हो?”
”हँसू नही तो क्या करू.” , बिल्ली ने जवाब दिया , ”
यहाँ मक्खियाँ नही है ये जगह तो बिलकुल साफ सुथरी है,
यहाँ कौन आयेगा तेरे जाले मे.”
ये बात मकड़ी के गले उतर गई. उसने अच्छी सलाह के लिये
बिल्ली को धन्यवाद दिया और जाला अधूरा छोड़कर
दूसरी जगह तलाश करने लगी. उसने ईधर ऊधर देखा. उसे एक
खिड़की नजर आयी और फिर उसमे जाला बुनना शुरू किया कुछ
देर तक वह जाला बुनती रही , तभी एक चिड़िया आयी और
मकड़ी का मजाक उड़ाते हुए बोली , ” अरे मकड़ी , तू
भी कितनी बेवकूफ है.”
“क्यो ?”, मकड़ी ने पूछा.
चिड़िया उसे समझाने लगी , ” अरे यहां तो खिड़की से तेज
हवा आती है. यहा तो तू अपने जाले के साथ ही उड़ जायेगी.”
मकड़ी को चिड़िया की बात ठीक लगीँ और वह
वहाँ भी जाला अधूरा बना छोड़कर सोचने लगी अब
कहाँ जाला बनायाँ जाये. समय काफी बीत चूका था और अब
उसे भूख भी लगने लगी थी .अब उसे एक
आलमारी का खुला दरवाजा दिखा और उसने उसी मे
अपना जाला बुनना शुरू किया. कुछ जाला बुना ही था तभी उसे
एक काक्रोच नजर आया जो जाले को अचरज भरे नजरो से देख
रहा था.
मकड़ी ने पूछा – ‘इस तरह क्यो देख रहे हो?’
काक्रोच बोला-,” अरे यहाँ कहाँ जाला बुनने चली आयी ये
तो बेकार की आलमारी है. अभी ये यहाँ पड़ी है कुछ दिनों बाद
इसे बेच दिया जायेगा और तुम्हारी सारी मेहनत बेकार
चली जायेगी. यह सुन कर मकड़ी ने वहां से हट जाना ही बेहतर
समझा .
बार-बार प्रयास करने से वह काफी थक चुकी थी और उसके
अंदर जाला बुनने की ताकत ही नही बची थी. भूख की वजह से
वह परेशान थी. उसे पछतावा हो रहा था कि अगर पहले
ही जाला बुन लेती तो अच्छा रहता. पर अब वह कुछ नहीं कर
सकती थी उसी हालत मे पड़ी रही.
जब मकड़ी को लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता है तो उसने
पास से गुजर रही चींटी से मदद करने का आग्रह किया .
चींटी बोली, ” मैं बहुत देर से तुम्हे देख रही थी , तुम बार- बार
अपना काम शुरू करती और दूसरों के कहने पर उसे अधूरा छोड़
देती . और जो लोग ऐसा करते हैं , उनकी यही हालत होती है.”
और ऐसा कहते हुए वह अपने रास्ते चली गई और
मकड़ी पछताती हुई निढाल पड़ी रही.
दोस्तों , हमारी ज़िन्दगी मे भी कई बार कुछ ऐसा ही होता है.
हम कोई काम start करते है. शुरू -शुरू मे तो हम उस काम के
लिये बड़े उत्साहित रहते है पर लोगो के comments की वजह
से उत्साह कम होने लगता है और हम अपना काम बीच मे
ही छोड़ देते है और जब बाद मे पता चलता है कि हम अपने
सफलता के कितने नजदीक थे तो बाद मे पछतावे के
अलावा कुछ नही बचता

Saturday 2 November 2013

HAPPY CHOTI DIWALI : काली पूजन की हार्दिक शुभकामनाये !

The day before diwali is celebrated as kali chaudas, narak chaturdashi, roop chaudas and chhoti diwali.
Kali means Dark (eternal) and Chaudas - Fourteenth. Thus, celebrated on the 14th day of the dark half of Āshwin month, Kali Chaudas is the day allotted to the worship of Mahakali or Shakti and is believed that on this day Kali killed the most wicked Narakasura. Also referred to as Naraka-Chaturdashi, Kali Chaudas is day to abolish laziness and evil which create hell in our life and shine light on life. The strength to protect others is referred as Kali, and if its used for God's work is called Maha-kali.

There are many significant rituals and stories behind this day. lets read a few of them. 

Story of Lord Hanuman and Sun

Once Hanumanji as a baby was very hungry. Whilst lying down he saw the sun in the sky and thought it was a fruit and went to pick it. He flew into the sky and put the whole sun in his mouth causing darkness throughout the entire universe. Lord Indra requested that Hanumanji return the sun. When Hanumanji refused, Lord Indra unleashed his vajra and knocked Hanumanji down to earth releasing the Sun. 

Legend of King Bali

King Bali became the most powerful king on earth. But he became highly arrogant. His form of charity was an occasion for pomp and show and those who went to seek Alms from the king Bali suffered insults and humiliation. His arrogance and misrule ended when the Lord appeared as beggar (vaman avtaar). King Bali asked the dwarf beggar to get anything in his kingdom. Lord replied he just want a piece of land that could be covered in his 3 steps. And with his first step Lord Vishnu covered the entire heaven, with the second step the earth and asked Bali where to keep his third step. Bali offered his head and became spiritually enlightened. The Narak chaturdashi day therefore is dedicated to lights and prayers and the elimination of greed.

Story of Narakasur vadh

Demon king Narakasur defeated Lord Indra and snatched away the magnificent earrings of Aditi, the Mother of Goddess. He also imprisoned sixteen thousand daughters of the gods and saints in his harem. On the day previous to Narak chaturdashi, Lord Krishna and devi Satyabhama killed the demon and liberated the imprisoned women. They also recovered those precious earrings of  Maa Aditi. Destruction of Narkasur made everyone happy and that why this day is celebrated as Narak Chaturdashi.

There is a very interesting tale associated with this day.
Narakaasura was a demon king ruling over Praagjyotishapura (the present day Assam). By virtue of his powers and boons secured from God, he became all conquering. Power made him big headed and he became a menace to the good and the holy men. He considered women as only an instrument of fulfilling his desires and had 16,000 ladies in captivity. The Gods headed by Davendra implored Sri Krishna to come to their rescue. Sri Krishna came from Dwarka and destroyed the huge army, which opposed him and finally beheaded Narakaasura himself. The population was freed from the oppressive tyranny and all heaved a sigh of relief. The 16,000 women kept in captivity by the demon king were freed. With a view to removing any stigma on them and according them social dignity, Sri Krishna gave all of them the status of his wives. The people lighted Deepaks on this dark night and made it a bright, cheerful and joyous night by wearing bright and new clothes.

HAPPY CHOTI DIWALI

Bhent--माँ के भेंटे

MAA NE KHEL RACHAYA HAI HUNN MAUJA HI MAUJA... DAR TE APP BULYA HAI HUN MAUJA HI MAUJA ...ASSAN NE US TOH JO MANGYA HAI OH PAYA HAI HUN MAUJA HI MAUJA ... 100-100 WARII CHARNA CH MATHHA ASI TEKYA JADO HOGIYA NE DUR UDASIYAN.. DUNIYA DI SHAAN MAHA RANI DA DIDAR KAR KUSH HUIYAN AKHIAN PAYSIYN ... CHARNA CH VAGDI GANGA DA AMRIT PAAN KARYA HAI HUN MAUJA HI MAUJA .. JAI MATA DI

Friday 1 November 2013

धनतेरस की पौराणिक कथI

धनतेरस की पौराणिक कथI

एक बार यमराज ने अपने दूतों से प्रश्न किया- क्या प्राणियों के प्राण हरते समय तुम्हें किसी पर दया भी आती है? यमदूत संकोच में पड़कर बोले- नहीं महाराज! हम तो आपकी आज्ञा का पालन करते हैं। हमें दया-भाव से क्या प्रयोजन?

यमराज ने सोचा कि शायद ये संकोचवश ऐसा कह रहे हैं। अतः उन्हें निर्भय करते हुए वे बोले- संकोच मत करो। यदि कभी कहीं तुम्हारा मन पसीजा हो तो निडर होकर कहो। तब यमदूतों ने डरते-डरते बताया- सचमुच! एक ऐसी ही घटना घटी थी महाराज, जब हमारा हृदय काँप उठा था।

ऐसी क्या घटना घटी थी? -उत्सुकतावश यमराज ने पूछा। दूतों ने कहा- महाराज! हंस नाम का राजा एक दिन शिकार के लिए गया। वह जंगल में अपने साथियों से बिछड़कर भटक गया और दूसरे राज्य की सीमा में चला गया। फिर? वहाँ के राजा हेमा ने राजा हंस का बड़ा सत्कार किया।

उसी दिन राजा हेमा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया था। ज्योतिषियों ने नक्षत्र गणना करके बताया कि यह बालक विवाह के चार दिन बाद मर जाएगा। राजा के आदेश से उस बालक को यमुना के तट पर एक गुहा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा गया। उस तक स्त्रियों की छाया भी न पहुँचने दी गई।

किन्तु विधि का विधान तो अडिग होता है। समय बीतता रहा। संयोग से एक दिन राजा हंस की युवा बेटी यमुना के तट पर निकल गई और उसने उस ब्रह्मचारी बालक से गंधर्व विवाह कर लिया। चौथा दिन आया और राजकुँवर मृत्यु को प्राप्त हुआ। उस नवपरिणीता का करुण विलाप सुनकर हमारा हृदय काँप गया। ऐसी सुंदर जोड़ी हमने कभी नहीं देखी थी। वे कामदेव तथा रति से भी कम नहीं थे। उस युवक को कालग्रस्त करते समय हमारे भी अश्रु नहीं थम पाए थे।

यमराज ने द्रवित होकर कहा- क्या किया जाए? विधि के विधान की मर्यादा हेतु हमें ऐसा अप्रिय कार्य करना पड़ा। महाराज! -एकाएक एक दूत ने पूछा- क्या अकालमृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है? यमराज नेअकाल मृत्यु से बचने का उपाय बताते हुए कहा- धनतेरस के पूजन एवं दीपदान को विधिपूर्वक करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है। जिस घर में यह पूजन होता है, वहाँ अकाल मृत्यु का भय पास भी नहीं फटकता।

इसी घटना से धनतेरस के दिन धन्वंतरि पूजन सहित दीपदान की प्रथा का प्रचलन शुरू हुआ।