Monday 30 September 2013

Banke Bihari Kahan Milenge
एक व्यक्ति बहुत नास्तिक था उसको भगवान पर विश्वास नहीं था एक बार उसके साथ दुर्घटना घटित हुई वो रोड पर पड़ा पड़ा सब की ओर कातर निगाहों से मदद के लिए देख रहा था, पर कलियुग का इंसान - किसी इंसान की मदद जल्दी नहीं करता, मालूम नहीं क्यों, वो येही सोच कर थक गया | तभी उसके नास्तिक मन ने अनमने से प्रभु को गुहार लगाई उसी समय एक ठेलेवाला वह से गुजरा उसने उसको गोद में उठाया और चिकित्सा हेतु ले गया उसने उनके परिवार वालो को फ़ोन किया और अस्पताल बुलाया सभी आये उस व्यक्ति को बहुत धन्यवाद दिया उसके घर का पता भी लिखवा लिया जब यह ठीक हो जायेगा तो आप से मिलने आयेंगे - वो सज्जन सही हो गए कुछ दिन बाद वो अपने परिवार के साथ उस व्यक्ति से मिलने का इरादा बनाते है और निकल पड़ते है मिलने | वो बाके बिहारी का नाम पूछते हुए उस पते पर जाते है उनको वहा पर प्रभु का मंदिर मिलता है, वो अचंभित से उस भवन को देखते है, और उसके अन्दर चले जाते जाते है | अभी भी वहा पर पुजारी से नाम लेकर पूछते है की यह बाके बिहारी कहा मिलेगा - पुजारी हाथ जोड़ मूर्ति की ओर इशारा कर के कहता है की यहाँ यही एक बाके बिहारी है | खैर वो मंदिर से लौटने लगते है तो उनकी निगाह एक बोर्ड पर पड़ती है उसमे एक वाक्य लिखा दिखता है - कि "इंसान ही इंसान के काम आता है, उस से प्रेम करते रहो मै तो तुम्हे स्वयं मिल जाऊंगा |

DEVI KAVACH… देवी कवच


DEVI KAVACH… Part – 1
बाला सुंदरी माता महामाई को हमारा नमस्कार है
चण्डिका देवी को नमस्कार है
Maarkandeye जी ने कहा ---पितामह ! जो इस संसार में परम गोपनीय तथा मनुष्य की सब प्रकार से रक्षा करने वाला है और जो अब तक आपने दुसरे किसी के सामने प्रकट नहीं किया हो , ऐसा कोई साधन मुझे बताइये II १ II
ब्रह्मा जी बोले ---ब्रह्मन ! ऐसा साधन तो एक देवी कवच ही है, जो गोपनीय से परम गोपनीय, पवित्र तथा सम्पूर्ण प्राणियों का उपकार करने वाला है. महामुने ! उसे श्रवण करो II 2II
देवी की नौ मूर्तियाँ हैं जिन्हें नव दुर्गा कहते हैं. उनके पृथक -पृथक नाम बतलाये जाते हैं. प्रथम नाम शैलपुत्री है. दूसरी मूर्ती का नाम ब्रह्मचारिणी है. तीसरा स्वरुप चन्द्रघण्टा के नाम से प्रसिद्द है. चौथी मूर्ती को कूष्मांडा कहते हैं. पांचवीं दुर्गा का नाम स्कंदमाता है. देवी की छठे रूप को कात्यानी कहते हैं. सातवाँ कालरात्रि और आठवाँ स्वरुप के नाम से प्रसिद्द है. नवीं दुर्गा का नाम ' सिद्धदात्री' है . ये सब नाम सर्वज्ञ महात्मा वेद भगवान के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं II ३--५ II

Devo ke dev Har Har Mahadev ॐ नम: शिवाय देवो के देव हर हर महादेव


Somvaar Vrat Katha

Sunday 29 September 2013

!! जय श्री राधे कृष्णा !!

पंचायत का निर्णय ....Radhe Krishna ......के सौजन्य से........
एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए उजड़े, वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये ! हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ? यहाँ न तो जल है,
न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं ! यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !

भटकते २ शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज कि रात बितालो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !

रात हुई तो जि
स पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे उस पर एक उल्लू बैठा था। वह जोर २ से चिल्लाने लगा। हंसिनी ने हंस से कहा, अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते। ये उल्लू चिल्ला रहा है।

हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ? ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।
पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों कि बात सुन रहा
था।

सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।
हंस ने कहा, कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद !

यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा, पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।
हंस चौंका, उसने कहा, आपकी पत्नी? अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है, मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही
है !

उल्लू ने कहा, खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है। दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग इक्कठा हो गये। कई गावों की जनता बैठी।

पंचायत बुलाई गयी। पंच लोग भी आ गये ! बोले, भाई किस बात का विवाद है ?
लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है ! लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पञ्च लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे।
हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है। इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना है ! फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों कि जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है ! यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने https://www.facebook.com/Krishna.Radhe143और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया।
उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली ! रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई !

ऐ मित्र हंस, रुको ! हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ? पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ? उल्लू ने कहा, नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी !

लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है !

मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है ।
यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पञ्च रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं !

शायद ६५ साल कि आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने हमेशा अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है ।

इस देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैं।

हर पढने वाला ध्यान से मनन करे क़ि इस बिगड़ी हुई व्यवस्था को सुधारने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

जय श्री राधे कृष्णा जी..

Saturday 28 September 2013

https://www.facebook.com/jaimaasherawali.blogspot.in

क्षमा करो अपराध शरण
माँ आया हु ,माता वैष्णो द्वार में शीश
जुकाया हु... तेरी ममता मिली है मुझको तेरा प्यार
मिला है .........
तेरे आंचल की छाया में मन का फूल
खिला है........ जय माता दी जय माता दी जय
माता दी

Friday 27 September 2013

माँ के नवरात्री जय माता दी जी

8 days to go ..........For Navratri Festival [नवरात्र ].
❝ !! सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके!!♥!!
शरन्ये त्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते !! ❞

हे माँ वैष्णवी हम सबको वरदान दीजिये ,,हमारी गलतिओं को माफ़ कीजिये

Thursday 26 September 2013

जय माता दी जी


एक साधु बहुत बूढ़े हो गए थे। उनके जीवन का आखिरी क्षण आ पहुँचा। आखिरी क्षणों में उन्होंने अपने शिष्यों और चेलों को पास बुलाया। जब सब उनके पास आ गए, तब उन्होंने अपना पोपला मुँह पूरा खोल दिया और शिष्यों से बोले-'देखो, मेरे मुँह में कितने दाँत बच गए हैं?' शिष्यों ने उनके मुँह की ओर देखा।

कुछ टटोलते हुए वे लगभग एक स्वर में बोल उठे-'महाराज आपका तो एक भीदाँत शेष नहीं बचा। शायद कई वर्षों से आपका एक भी दाँत नहीं है।' साधु बोले-'देखो, मेरी जीभ तो बची हुई है।'

सबने उत्तर दिया-'हाँ, आपकी जीभ अवश्य बची हुई है।' इस पर सबने कहा-'पर यह हुआ कैसे?' मेरे जन्म के समय जीभ थी और आज मैं यह चोला छोड़ रहा हूँ तो भी यह जीभ बची हुईहै। ये दाँत पीछे पैदा हुए, ये जीभसे पहले कैसे विदा हो गए? इसका क्या कारण है, कभी सोचा?'

शिष्यों ने उत्तर दिया-'हमें मालूम नहीं। महाराज, आप ही बतलाइए।'

उस समय मृदु आवाज में संत ने समझाया- 'यही रहस्य बताने के लिए मैंने तुम सबको इस बेला में बुलाया है। इस जीभ में माधुर्य था, मृदुता थी और खुद भी कोमल थी, इसलिए वह आज भी मेरे पास है परंतु.......मेरे दाँतों में शुरू से ही कठोरता थी, इसलिए वे पीछे आकर भी पहले खत्म हो गए, अपनी कठोरता के कारण ही ये दीर्घजीवी नहीं हो सके।

दीर्घजीवी होना चाहते हो तो कठोरता छोड़ो और विनम्रता सीखो।'

Monday 23 September 2013

परिश्रम करने से कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिए जय माता दी


एक किसान था. उसके खेत में एक पत्थर का एक हिस्सा ज़मीन से ऊपर निकला हुआ था जिससे ठोकर खाकर वह कई बार गिर चुका था और कितनी ही बार उससे टकराकर खेती के औजार भी टूट चुके थे.

रोजाना की तरह आज भी वह सुबह-सुबह खेती करने पहुंचा और इस बार वही हुआ, किसान का हल पत्थर से टकराकर टूट गया. किसान क्रोधित हो उठा, और उसने निश्चय किया कि आज जो भी हो जाए वह इस चट्टान को ज़मीन से निकाल कर इस खेत के बाहर फ़ेंक देगा.

वह तुरंत गाँव से ४-५ लोगों को बुला लाया और सभी को लेकर वह उस पत्त्थर के पास पहुंचा और बोल, ” यह देखो ज़मीन से निकले चट्टान के इस हिस्से ने मेरा बहुत नुक्सान किया है, और आज हम सभी को मिलकर इसे आज उखाड़कर खेत के बाहर फ़ेंक देना है.” और ऐसा कहते ही वह फावड़े से पत्थर के किनार वार करने लगा, पर यह क्या ! अभी उसने एक-दो बार ही मारा था कि पूरा-का पूरा पत्थर ज़मीन से बाहर निकल आया. साथ खड़े लोग भी अचरज में पड़ गए और उन्ही में से एक ने हँसते हुए पूछा , “क्यों भाई , तुम तो कहते थे कि तुम्हारे खेत के बीच में एक बड़ी सी चट्टान दबी हुई है , पर ये तो एक मामूली सा पत्थर निकला ??”

किसान भी आश्चर्य में पड़ गया सालों से जिसे वह एक भारी-भरकम चट्टान समझ रहा था दरअसल वह बस एक छोटा सा पत्थर था ! उसे पछतावा हुआ कि काश उसने पहले ही इसे निकालने का प्रयास किया होता तो ना उसे इतना नुकसान उठाना पड़ता और ना ही दोस्तों के सामने उसका मज़ाक बनता .

हम भी कई बार ज़िन्दगी में आने वाली छोटी-छोटी बाधाओं को बहुत बड़ा समझ लेते हैं और उनसे निपटने की बजाय तकलीफ उठाते रहते हैं. ज़रुरत इस बातकी है कि हम बिना समय गंवाएं उन मुसीबतों से लडें , और जब हम ऐसा करेंगे तो कुछ ही समय में चट्टान सी दिखने वाली समस्या एक छोटे से पत्थर के समान दिखने लगेगी जिसे हम आसानी से हल पाकर आगे बढ़ सकते हैं

अब जय माता दी कहते जाओ सब जय माता दी 

Saturday 21 September 2013

!! Jai Mata Di !!


मेरे पास देने के लिए कुछ नहीं है.

कहते हैं कि आप जैसी भावना मन में लाते हैं या बोलते हैं वैसा करने के लिए सारी कायनात जुट जाती है. जैसा आप चौबीस घंटे सोचते हैं वैसा ही आपके साथ होने भी लगता है. इसलिये कहा गया है कि आपके विचार हमेशा सकारात्मक होना चाहिये.

एक साधु था. वह् गाँव गाँव भ्रमण करता था और एक गाँव में कभी भी एक महीने से ज्यादा नहीं रुकता था. भोजन के लिए वह् गाँव के मात्र पाँच घरों में भि
क्षा के लिए जाता था और जो मिल जाता था उसे खाकर संतुष्ट रहता था. प्रति दिन वह् भिक्षा के लिए घर बदल लेता था और किसी हाल में पाँच घर से ज्यादा नहीं जाता था फिर भिक्षा मिलें या न मिलें.

एक दिन वह् रोज़ की भांति भिक्षा के लिए निकाला. एक घर पर महिला ने भिक्षा न देते हुए साधु को बहुत ही भला बुरा कहा. साधु चुप चाप आगे बड़ गया. यह किस्सा 3-4 दिनों तक चलता रहा. साधु का गाँव छोड़ने का समय आ गया. वह् अन्तिम बार उस महिल के घर भिक्षा माँगने गया. महिला, जो कि साधु से बहुत ही परेशान हो चुकी थी, चिल्ला कर बोली कि उसके पास साधु को देने के लिये कुछ भी नहीं है. इस पर साधु ने कहा कि ,"बहिन तुम एक सम्पन्न परिवार की महिला हो और तुम्हे यह कहना शोभा नहीं देता है कि तुम्हारे पास मुझे देने के लिए कुछ भी नहीं है. हम जो विचार मन में लाते है और बोलते है, कई बार हमारे साथ वैसा ही होने लगता है. अतः तुम्हारा यह कहना कि तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है. ग़लत है." फिर साधु ने जमीन की एक मुट्ठी मिट्ठी उठाई और महिलाको देते हुए कहा , " बहिन ये मिट्ठी तुम्हारे आँगन की है. तुम मुझे यही मिट्ठी भिक्षा में दे दो और आज से भविष्य में कभी भी ये न कहना कि तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है."

Friday 20 September 2013

माँ वैष्णोदेवी की कथा

आपने जम्मू की वैष्णो माता का नाम अवश्य सुना होगा। आज हम आपको इन्हीं की कहानी सुना रहे हैं, जो बरसों से जम्मू-कश्मीर में सुनी व सुनाई जाती है। कटरा के करीब हन्साली ग्राम में माता के परम भक्त श्रीधर रहते थे। उनके यहाँ कोई संतान न थी।

वे इस कारण बहुत दुखी रहते थे। एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को बुलवाया। माँ वैष्णो कन्या वेश में उन्हीं के बीच आ बैठीं। अन्य कन्याएँ तो चली गईं किंतु माँ वैष्णो नहीं गईं।

वह श्रीधर से बोलीं-‘सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ।’ श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस-पास के गाँवों में भंडारे का संदेश पहुँचा दिया। लौटते समय गोरखनाथ व भैरवनाथ जी को भी उनके चेलों सहित न्यौता दे दिया। सभी अतिथि हैरान थे कि आखिर कौन-सी कन्या है, जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है?

श्रीधर की कुटिया में बहुत-से लोग बैठ गए। दिव्य कन्या ने एक विचित्र पात्र से भोजन परोसना आरंभ किया। जब कन्या भैरवनाथ के पास पहुँची तो वह बोले, ‘मुझे तो मांस व मदिरा चाहिए।’ ‘ब्राह्मण के भंडारे में यह सब नहीं मिलता।’ कन्या ने दृढ़ स्वर में उत्तर दिया। भैरवनाथ ने जिद पकड़ ली किंतु माता उसकी चाल भाँप गई थीं।


वह पवन का रूप धारण कर त्रिकूट पर्वत की ओर उड़ चलीं। भैरव ने उनका पीछा किया। माता के साथ उनका वीर लंगूर भी था। एक गुफा में माँ शक्ति ने नौ माह तक तप किया। भैरव भी उनकी खोज में वहाँ आ पहुँचा। एक साधु ने उससे कहा, ‘जिसे तू साधारण नारी समझता है, वह तो महाशक्ति हैं।’

भैरव ने साधु की बात अनसुनी कर दी। माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं। वह गुफा आज भी गर्भ जून के नाम से जानी जाती है। देवी ने भैरव को लौटने की चेतावनी भी दी किंतु वह नहीं माना। माँ गुफा के भीतर चली गईं। द्वार पर वीर लंगूर था। उसने भरैव से युद्ध किया। जब वीर लंगूर निढाल होने लगा तो माता वैष्णो ने चंडी का रूप धारण किया और भैरव का वध कर दिया।

भैरव का सिर भैरों घाटी में जा गिरा। तब माँ ने उसे वरदान दिया कि जो भी मेरे दर्शनों के पश्चात भैरों के दर्शन करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूरी होंगी। आज भी प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु माता वैष्णों के दर्शन करने आते हैं। गुफा में माता पिंडी रूप में विराजमान हैं।

Thursday 19 September 2013

एकलव्य की गुरुभक्ति


आचार्य द्रोण राजकुमारों को धनुर्विद्या की विधिवत शिक्षा प्रदान करने लगे। उन राजकुमारों में अर्जुन के अत्यन्त प्रतिभावान तथा गुरुभक्त होने के कारण वे द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे। द्रोणाचार्य का अपने पुत्र अश्वत्थामा पर भी विशेष अनुराग था इसलिये धनुर्विद्या में वे भी सभी राजकुमारों में अग्रणी थे, किन्तु अर्जुन अश्वत्थामा से भी अधिक प्रतिभावान थे। एक रात्रि को गुरु के आश्रम में जब सभी शिष्य भोजन कर रहे थे तभी अकस्मात् हवा के झौंके से दीपक बुझ गया। अर्जुन ने देखा अन्धकार हो जाने पर भी भोजन के कौर को हाथ मुँह तक ले जाता है। इस घटना से उन्हें यह समझ में आया कि निशाना लगाने के लिये प्रकाश से अधिक अभ्यास की आवश्यकता है और वे रात्रि के अन्धकार में निशाना लगाने का अभ्यास करना आरम्भ कर दिया। गुरु द्रोण उनके इस प्रकार के अभ्यास से अत्यन्त प्रसन्न हुये। उन्होंने अर्जुन को धनुर्विद्या के साथ ही साथ गदा, तोमर, तलवार आदि शस्त्रों के प्रयोग में निपुण कर दिया।एकलव्य की गुरुभक्ति

उन्हीं दिनों हिरण्य धनु नामक निषाद का पुत्र एकलव्य भी धनुर्विद्या सीखने के उद्देश्य से द्रोणाचार्य के आश्रम में आया किन्तु निम्न वर्ण का होने के कारण द्रोणाचार्य ने उसे अपना शिष्य बनाना स्वीकार नहीं किया। निराश हो कर एकलव्य वन में चला गया। उसने द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाई और उस मूर्ति को गुरु मान कर धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगा। एकाग्रचित्त से साधना करते हुये अल्पकाल में ही वह धनु्र्विद्या में अत्यन्त निपुण हो गया।

एक दिन सारे राजकुमार गुरु द्रोण के साथ आखेट के लिये उसी वन में गये जहाँ पर एकलव्य आश्रम बना कर धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहा था। राजकुमारों का कुत्ता भटक कर एकलव्य के आश्रम में जा पहुँचा। एकलव्य को देख कर वह भौंकने लगा। इससे क्रोधित हो कर एकलव्य ने उस कुत्ते अपना बाण चला-चला कर उसके मुँह को बाणों से से भर दिया। एकलव्य ने इस कौशल से बाण चलाये थे कि कुत्ते को किसी प्रकार की चोट नहीं लगी किन्तु बाणों से बिंध जाने के कारण उसका भौंकना बन्द हो गया।

कुत्ते के लौटने पर जब अर्जुन ने धनुर्विद्या के उस कौशल को देखा तो वे द्रोणाचार्य से बोले, "हे गुरुदेव! इस कुत्ते के मुँह में जिस कौशल से बाण चलाये गये हैं उससे तो प्रतीत होता है कि यहाँ पर कोई मुझसे भी बड़ा धनुर्धर रहता है।" अपने सभी शिष्यों को ले कर द्रोणाचार्य एकलव्य के पास पहुँचे और पूछे, "हे वत्स! क्या ये बाण तुम्हीं ने चलाये है?" एकलव्य के स्वीकार करने पर उन्होंने पुनः प्रश्न किया, "तुम्हें धनुर्विद्या की शिक्षा देने वाले कौन हैं?" एकलव्य ने उत्तर दिया, "गुरुदेव! मैंने तो आपको ही गुरु स्वीकार कर के धनुर्विद्या सीखी है।" इतना कह कर उसने द्रोणाचार्य की उनकी मूर्ति के समक्ष ले जा कर खड़ा कर दिया।

द्रोणाचार्य नहीं चाहते थे कि कोई अर्जुन से बड़ा धनुर्धारी बन पाये। वे एकलव्य से बोले, "यदि मैं तुम्हारा गुरु हूँ तो तुम्हें मुझको गुरुदक्षिणा देनी होगी।" एकलव्य बोला, "गुरुदेव! गुरुदक्षिणा के रूप में आप जो भी माँगेंगे मैं देने के लिये तैयार हूँ।" इस पर द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरुदक्षिणा के रूप में उसके दाहिने हाथ के अँगूठे की माँग की। एकलव्य ने सहर्ष अपना अँगूठा दे दिया। इस प्रकार एकलव्य अपने हाथ से धनुष चलाने में असमर्थ हो गया तो अपने पैरों से धनुष चलाने का अभ्यास करना आरम्भ कर दिया।

Wednesday 18 September 2013

ॐ जय माता दी जय हो माता रानी की ॐ

एक राजा की चार रानियां थीं। एक दिन प्रसन्न होकर राजा ने उन्हें वरदान मांगने
को कहा। रानियों ने कहा कि समय आने पर वे
मांग लेंगी। कुछ समय बाद राजा ने एक
अपराधी को मृत्युदंड दिया। बड़ी रानी ने
सोचा कि इस मरणासन्न व्यक्ति को एक
दिन का जीवनदान देकर उसे उत्तम पकवान खिलाकर खुश करना चाहिए। उन्होंने राजा से
प्रार्थना की- मेरे वरदान के रूप में आप इस
अपराधी को एक दिन का जीवनदान दें और
उसका आतिथ्य मुझे करने दें।
रानी की प्रार्थना स्वीकार कर ली गई। रानी ने
अपराधी को स्वादिष्ट भोजन कराया। किंतु अपराधी ने उस राजसी खाने में कोई खास
रुचि नहीं ली। दूसरी रानी ने भी वही वरदान
मांगा और अपराधी को एक दिन का जीवनदान
और मिल गया। दूसरी रानी ने खाना खिलाने के
साथ उसे सुंदर वस्त्र भी दिए। पर
अपराधी असंतुष्ट रहा। तीसरे दिन तीसरी रानी ने फिर वही वरदान
मांगकर उसके नृत्य-संगीत
की व्यवस्था भी की। किंतु अपराधी का मन
तनिक भी नहीं लगा। चौथे दिन सबसे
छोटी रानी ने राजा से प्रार्थना की कि मैं
वरदान में चाहती हूं कि इस अपराधी को क्षमादान दिया जाए।
रानी की प्रार्थना स्वीकार कर ली गई। उस
रानी ने अपराधी को सूखी रोटियां व दाल
खिलाई, जिन्हें उसने बड़े आनंद से खाया।
राजा ने अपराधी से इस बारे में पूछा तो वह
बोला- राजन, मुझे तो छोटी रानी की रूखी- सूखी रोटियां सबसे स्वादिष्ट लगीं,
क्योंकि तब मुझे मृत्यु का भय नहीं था। उससे
पहले मौत के भय के कारण मुझे कुछ
भी अच्छा नहीं लग रहा था।

Tuesday 17 September 2013

https://www.facebook.com/pages/Jai-Mata-Di/215834675241521

बाज की उड़ान


एक बार की बात है कि एक बाज का अंडा मुर्गी के अण्डों के बीच आ गया. कुछ दिनों बाद उन अण्डों में से चूजे निकले, बाज का बच्चा भी उनमे से एक था.वो उन्ही के बीच बड़ा होने लगा. वो वही करता जो बाकी चूजे करते, मिटटी में इधर-उधर खेलता, दाना चुगता और दिन भर उन्हीकी तरह चूँ-चूँ करता. बाकी चूजों की तरह वो भी बस थोडा सा ही ऊपर उड़ पाता , और पंख फड़-फडाते हुए नीचे आ जाता . फिर एक दिन उसने एक बाज को खुले आकाश में उड़ते हुए देखा, बाज बड़े शान से बेधड़क उड़ रहा था. तब उसने बाकी चूजों से पूछा, कि-

” इतनी उचाई पर उड़ने वाला वो शानदार पक्षी कौन है?”



तब चूजों ने कहा-” अरे वो बाज है, पक्षियों का राजा, वो बहुत ही ताकतवर और विशाल है , लेकिन तुम उसकी तरह नहीं उड़ सकते क्योंकि तुम तो एक चूजे हो!”



बाज के बच्चे ने इसे सच मान लिया और कभी वैसा बनने की कोशिश नहीं की. वो ज़िन्दगी भर चूजों की तरह रहा, और एक दिन बिना अपनी असली ताकत पहचाने ही मर गया.

दोस्तों , हममें से बहुत से लोग उस बाज की तरह ही अपना असली potential जाने बिना एक second-class ज़िन्दगी जीते रहते हैं, हमारे आस-पास की mediocrity हमें भी mediocre बना देती है.हम में ये भूल जाते हैं कि हम आपार संभावनाओं से पूर्ण एक प्राणी हैं. हमारे लिए इस जग में कुछ भी असंभव नहीं है,पर फिर भी बस एक औसत जीवन जी के हम इतने बड़े मौके को गँवा देते हैं.



आप चूजों की तरह मत बनिए , अपने आप पर ,अपनी काबिलियत पर भरोसा कीजिए. आप चाहे जहाँ हों, जिस परिवेश में हों, अपनी क्षमताओं को पहचानिए और आकाश की ऊँचाइयों पर उड़ कर दिखाइए क्योंकि यही आपकी वास्तविकता है.
वह देखो
आज की इस विषम परिस्थिति में मनुष्य मात्र के लिए , विशेषतया युवकों एवं बालकों के लिए भगवन हनुमान की उपासना अत्यंत अवश्यक है I हनुमान जी बुधि -बल -शौर्य प्रदान करते हैं और उनके स्मरण मात्र से अनेक रोगों का प्रशमन होता है I मानसिक दुर्बलताओं के संघर्ष में उनसे सहायता प्राप्त होती है गोस्वामी तुलसीदास जी को श्री राम के दर्शन में उन्हीं से सहायता प्राप्त हुई थी I

वे आज जहाँ भी श्री राम कथा होती है , वहां पहुंचते हैं और मस्तक झुकाकर , रोमांच - कंटकित होकर , नेत्रों में अश्रू भरकर श्री राम कथा का सiदर श्रवण करते हैं I
हनुमान जी भगवत्त तत्व विज्ञानं , पराभक्ति और सेवा के ज्वलंत उधारण हैं I

Monday 16 September 2013








एक आदमी कहीं से गुजर रहा था,
तभी उसने सड़क के किनारे बंधे
हाथियों को देखा, और अचानक रुक
गया. उसने देखा कि हाथियों के
अगले पैर में एक रस्सी बंधी हुई है, उसे
इस बात का बड़ा अचरज हुआ कि हाथी जैसे
विशालकाय जीव
लोहे की जंजीरों की जगह बस एक
छोटी सी रस्सी से बंधे हुए हैं!!! ये
स्पष्ट था कि हाथी जब चाहते तब
अपने बंधन तोड़ कर
कहीं भी जा सकते थे, पर किसी वजह से
वो ऐसा नहीं कर रहे
थे. उसने पास खड़े महावत से
पूछा कि भला ये हाथी किस प्रकार
इतनी शांति से खड़े हैं और भागने
का प्रयास नही कर रहे हैं ? तब महावत
ने कहा, ” इन हाथियों को छोटे से हीइन
रस्सियों से बाँधा जाता है, उस
समय इनके पास
इतनी शक्ति नहीं होती कि इस
बंधन
को तोड़ सकें. बार-बार प्रयास करने पर
भी रस्सी ना तोड़ पाने के कारण उन्हें
धीरे-धीरे
यकीन होता जाता है
कि वो इन रस्सियों नहीं तोड़
सकते, और बड़े होने पर भी उनका ये
यकीन बना रहता है, इसलिए
वो कभी इसे तोड़ने का प्रयास
ही नहीं करते.” आदमी आश्चर्य में पड़
गया कि ये
ताकतवर जानवर
सिर्फ इसलिए अपना बंधन
नहीं तोड़ सकते क्योंकि वो इस बात
में यकीन करते हैं!!
इन हाथियों की तरह ही हममें से
कितने लोग सिर्फ पहले मिली असफलता के
कारण ये मान
बैठते हैं कि अब हमसे ये काम
हो ही नहीं सकता और
अपनी ही बनायीं हुई मानसिक
जंजीरों में जकड़े-जकड़े पूरा जीवन
गुजार देते हैं. याद रखिये असफलताजीवन
का एक
हिस्सा है और निरंतर प्रयास करने
से ही सफलता मिलती है. यदि आप
भी ऐसे किसी बंधन में बंधें हैं
जो आपको अपने सपने सच करने से
रोक रहा है तो उसे तोड़ डालिए….. आप
हाथी नहीं इंसान हैं

Saturday 14 September 2013

https://www.facebook.com/pages/Jai-Mata-Di/215834675241521





 
 
 एक बोध कथा 

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी - जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , " काँच की बरनी और दो कप चाय " हमें याद आती है । 

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ... 

उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ ... आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये h धीरे - धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ ... कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ .. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई ... प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया – इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो .... टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं , छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है .. अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी ... ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ ... टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ..... पहले तय करो कि क्या जरूरी है ... बाकी सब तो रेत है .. छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया ... 

इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन हमारे पास उस परम पिता परमात्मा को सिमरन करने के लिए हमेशा समय होना चाहिए I

Friday 13 September 2013

एक बार एक मछुआरा समुद्र किनारे आराम से
छांव में बैठकर शांति से बीडी पी रहा था।

अचानक एक बिजनैसमैन वहाँ से गुजरा और उसने
मछुआरे से पूछा "तुम काम करने के बजाय आराम
क्यों फरमा रहे हो?"

इस पर गरीब मछुआरे ने कहा "मै आज के लिये
पर्याप्त मछलियाँ पकड चुका हूँ ।"

यह सुनकर बिज़नेसमैन गुस्से में आकर
बोला "यहाँ बैठकर समय बर्बाद करने से बेहतर है
कि तुम क्यों ना और मछलियाँ पकडो ।"

मछुआरे ने पूछा "और मछलियाँ पकडने से
क्या होगा ?"

बिज़नेसमैन : उन्हे बेंचकर तुम और ज्यादा पैसे
कमा सकते हो और एक बडी बोट भी ले सकते
हो ।

मछुआरा :- उससे क्या होगा ?

बिज़नेसमैन :- उससे तुम समुद्र में और दूर तक
जाकर और मछलियाँ पकड सकते हो और
ज्यादा पैसे कमा सकते हो ।

मछुआरा :- "उससे क्या होगा?"

बिज़नेसमैन : "तुम और अधिक बोट खरीद सकते
हो और कर्मचारी रखकर और अधिक पैसे
कमा सकते हो ।"

मछुआरा : "उससे क्या होगा ?"

बिज़नेसमैन : "उससे तुम मेरी तरह अमीर
बिज़नेसमैन बन जाओगे ।"

मछुआरा :- "उससे क्या होगा?"

बिज़नेसमैन : "अरे बेवकूफ उससे तू अपना जीवन
शांति से व्यतीत कर सकेगा ।"

मछुआरा :- "तो आपको क्या लगता है, अभी मैं
क्या कर रहा हूँ ?!!"

बिज़नेसमैन निरुत्तर हो गया ।

मोरल – "जीवन का आनंद लेने के लिये कल
का इंतजार करने की आवश्यकता नहीं । और
ना ही सुख और शांति के लिये और अधिक
धनवान बनने की आवश्यकता है । जो इस क्षण
है, वही जीवन है। दिल से जियो" । :)

Thursday 12 September 2013

कृष्ण की प्राप्ति के लिये सारा ही जगत प्रयत्नशील है। ये वही कृष्ण हैं जिनकी पूजा ब्रह्मा जी दिन रात करते हैं। सदाशिव जिनका सदा ही ध्यान धरे रहते हैं। यही विष्णु के अवतार कृष्ण जिनके लिये मूर्ख राजा और रंक तपस्या करके सर्दी सहकर भी तपस्या करते हैं। यही आनंद के भण्डार कृष्ण ब्रज के प्राणों के प्राण हैं। जिनके दर्शनों की अभिलाषाएं लाख-लाख बढती हैं। जो पृथ्वी पर रहने वालों का अहंकार मिटाने वाले हैं। वही कमल नयन कृष्ण आज देखो यशोदा माँ के सामने बची खुची मलाई लेने के लिये मचले खडे हैं।

Wednesday 11 September 2013

!! Jai Mata Di !!:                      

 !! Jai Mata Di !!:

एक आदमी कहीं से गुजर रहा था, तभी उसने सड़क के किनारे बंधे
हाथियों को देखा, और अचानक रुक गया.
उसने देखा कि हाथियों के अगले पैर में एक रस्सी बंधी हुई है, उसे इस बात का बड़ा अचरज हुआ कि हाथी जैसे विशालकाय जीव लोहे की जंजीरों की जगह बस एक छोटी सी रस्सी से बंधे हुए हैं!!!
ये स्पष्ट था कि हाथी जब चाहते तब अपने बंधन तोड़ कर कहीं भी जा सकते थे, पर किसी वजह से वो ऐसा नहीं कर रहे थे. उसने पास खड़े महावत से
पूछा कि भला ये हाथी किस प्रकार इतनी शांति से खड़े हैं और भागने का प्रयास नही कर रहे हैं ?
तब महावत ने कहा, ” इन हाथियों को छोटेपन से ही इन रस्सियों से बाँधा जाता है, उस समय इनके पास इतनी शक्ति नहीं होती कि इस
बंधन को तोड़ सकें. बार-बार प्रयास करने पर भी रस्सी ना तोड़ पाने के कारण उन्हें धीरे-धीरे यकीन होता जाता है कि वो इन रस्सियों नहीं तोड़ सकते, और बड़े होने पर भी उनका ये यकीन बना रहता है, इसलिए वो कभी इसे तोड़ने का प्रयास ही नहीं करते.”
आदमी आश्चर्य में पड़ गया कि ये ताकतवर जानवर सिर्फ इसलिए अपना बंधन नहीं तोड़ सकते क्योंकि वो इस बात में यकीन करते हैं!!
इन हाथियों की तरह ही हममें से कितने लोग सिर्फ पहले मिली असफलता के
कारण ये मान बैठते हैं कि अब हमसे ये काम हो ही नहीं सकता और
अपनी ही बनायीं हुई मानसिक जंजीरों में जकड़े-जकड़े पूरा जीवन गुजार देते हैं.

याद रखिये असफलता जीवन का एक हिस्सा है और निरंतर प्रयास करने
से ही सफलता मिलती है. यदि आप भी ऐसे किसी बंधन में बंधें हैं
जो आपको अपने सपने सच करने से रोक रहा है तो उसे तोड़ डालिए…..
आप हाथी नहीं इंसान हैं ।





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   !! माता रानी की कथा  MATA Rani KI Katha !!

Tuesday 10 September 2013

Ma TO MA HOTI HAI !! माँ तो माँ होती है जय माता दी !!



एक बालक अपने माँ-बाप की खूब सेवा किया करता !

जय माता दी

                                                       Prakriti Se Prem Jai Mata Di


दो लोग गंभीर तरीके से बीमार थे और
दोनों को एक ही रूम
रखा था .
एक को फेफड़े की तंदरुस्ती के रोज़ 2 घंटे खिड़की के पास
बेठने का आदेश मिला था .
रूम में केवल एक ही खिड़की थी और
उसका पलंग उस
खिड़की के पास था
जबकि दुसरे मरीज़ को पलंग पर ही पड़े रहना पड़ता था .
वो दोनों घंटो तक बाते करते अपने
बीवी, बच्चो और नोकरी ,
घूमने फिरने वगेरह के बारे में बाते करते
थे .
हर रोज जब वो पहला मरीज़ खिड़की के पास बेठता तो दुसरे
मरीज़ को बाहर का माहौल बता कर
समय बिताता 2 घंटो के लिए
मानो उस दुसरे मरीज़ के लिए
वो हॉस्पिटल भुलाकर
पूरी दुनिया की सेर करवाता . " खिड़की के बहार एक सुंदर
बगीचा है और झील में .
तालाबों, बतख और कुछ कलहंस खेलते
हैं.
दूसरी ओर, बच्चे कागज की नावे
बना कर खेल रहे हैं. प्रेमी जोड़े हाथ में हाथ रख कर दूर तक
चल रहे है .
विभिन्न रंगों के फूलों के बीच,
आकाश सुरम्य दृश्यों में मूल्यांकन कर
रहा है ...
आकाश में पंछी अपने पंखो के साथ उड़ान भर रहे है
" दूसरा आदमी अपनी आँखें बंद कर
देता है और इन सब
की कल्पना करता था .
ऐसे करते करते दिन महीनो में बीत
गये एक दिन जब नर्स उस पहले मरीज़ को नहलाने आई तोह
देखा की वो पलंग पर
निर्जीव पड़ा है नर्स को बहुत दुःख
हुआ
नर्स ने अस्पताल
वालो को बुलाया और उसका निर्जीव
शरीर को रूम से बहार ले गए
अब खिड़की वाला पलंग
खाली हो गया ... और दूसरा मरीज़
अकेला पङ गया
कुछ दिनों बाद दुसरे मरीज़ ने नर्स से खिड़की वाला पलंग लेने
की बात कही
नर्स ने ख़ुशी से दुसरे मरीज़
को खिड़की वाला पलंग दे दिया .
खिड़की वाला पलंग पाकर
दूसरा मरीज़ खुश हुआ धीरे धीरे थोडा सा कष्ट उठाकर
खिड़की के पास बेठने
की कोशिश की
जैसे तैसे मुश्किल से बेठा और
खिड़की के बहार
की सुन्दरता देखने की कोशिश की जैसे ही उसने खिड़की में
झाका तो उसके मुह से निकल
पड़ा अरे ये क्या ?
खिड़की के बाहर सिर्फ एक दीवार
थी .
उसके कुछ समझ में नहीं आया . उसने नर्स से पूछा - " नर्स
यहाँ खिड़की के बाहर
बगीचा था ये दीवार कहा से आई?
नर्स ने कहा: " वह
आदमी अंधा था और यहां तक
कि दीवार नहीं देख सकता ,
वह तो बस आप को प्रोत्साहित
करना चाहता था !
"बोध "
दुसरो को खुश करना यही सबसे
बड़ा सुख है . भले
ही अपनी परिस्थिति कैसी ही क्
दुःख बाटने से आधा होता है और सुख
बाटने से दुगुना होता है
सुख एक ऐसी चीज़ है
जिसको पैसो से नहीं खरीद बस किसी को ख़ुशी देकर
सुख को अनुभव
किया जा सकता है.