Saturday, 15 February 2014

ॐ जय श्री राधे कृष्णा ॐ जय श्री श्याम

प्रेरणादायक कहानी
एक गरीब युवक, अपनी गरीबी से परेशान होकर,
अपना जीवन समाप्त करने नदी पर गया, वहां एक
साधू ने उसे ऐसा करने से रोक दिया।
साधू ने, युवक की परेशानी को सुन कर कहा, कि मेरे
पास एक विद्या है, जिससे ऐसा जादुई घड़ा बन
जायेगा जो भी इस घड़े से मांगोगे, ये जादुई
घड़ा पूरी कर देगा, पर जिस दिन ये घड़ा फूट गया,
उसी समय, जो कुछ भी इस घड़े ने दिया है, वह
सब गायब हो जायेगा।
अगर तुम मेरी 2 साल तक सेवा करो, तो ये घड़ा,
मैं तुम्हे दे सकता हूँ और, अगर 5 साल तक तुम
मेरी सेवा करो, तो मैं, ये घड़ा बनाने
की विद्या तुम्हे सिखा दूंगा। बोलो तुम क्या चाहते
हो,
युवक ने कहा, महाराज मैं तो 2 साल ही आप
की सेवा करना चाहूँगा , मुझे तो जल्द से जल्द, बस
ये घड़ा ही चाहिए, मैं इसे बहुत संभाल कर रखूँगा,
कभी फूटने ही नहीं दूंगा।
इस तरह 2 साल सेवा करने के बाद, युवक ने
वो जादुई घड़ा प्राप्त कर लिया, और अपने घर
पहुँच गया।
उसने घड़े से अपनी हर इच्छा पूरी करवानी शुरू कर
दी, महल बनवाया, नौकर चाकर मांगे,
सभी को अपनी शान शौकत दिखाने लगा,
सभी को बुला-बुला कर दावतें देने लगा और बहुत
ही विलासिता का जीवन जीने लगा, उसने शराब
भी पीनी शुरू कर दी और एक दिन नशें में, घड़ा सर
पर रख नाचने लगा और ठोकर लगने से घड़ा गिर
गया और फूट गया.
घड़ा फूटते ही सभी कुछ गायब हो गया, अब युवक
सोचने लगा कि काश मैंने जल्दबाजी न की होती और
घड़ा बनाने की विद्या सीख ली होती, तो आज मैं,
फिर से कंगाल न होता।
" ईश्वर हमें हमेशा 2 रास्ते पर रखता है एक
आसान -जल्दी वाला और दूसरा थोडा लम्बे समय
वाला, पर गहरे ज्ञान वाला, ये हमें चुनना होता है
की हम किस रास्ते पर चलें "
" कोई भी काम जल्दी में करना अच्छा नहीं होता,
बल्कि उसके विषय में गहरा ज्ञान
आपको अनुभवी बनाता है "
आपका दिन मंगलमय हो !!
ॐ जय श्री राधे कृष्णा ॐ जय श्री श्याम

Thursday, 2 January 2014

मानस से : नवधा भक्ति

प्रथम भगति संतन्ह कर संगा । दूसरि रति मम कथा प्रसंगा ॥
गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान।
चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान ॥
मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा । पंचम भजन सो बेद प्रकासा ॥
छठ दम सील बिरति बहु करमा । निरत निरंतर सज्जन धरमा ॥
सातवँ सम मोहि मय जग देखा । मोतें संत अधिक करि लेखा ॥
आठवँ जथालाभ संतोषा । सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा ॥
नवम सरल सब सन छलहीना । मम भरोस हियँ हरष न दीना ॥

नव महुँ एकउ जिन्ह के होई । नारि पुरुष सचराचर कोई ॥
मम दरसन फल परम अनूपा । जीव पाव निज सहज सरूपा ॥ 

सगुन उपासक परहित निरत नीति दृढ़ नेम ।
ते नर प्रान समान मम जिन्ह कें द्विज पद प्रेम ॥

Wednesday, 25 December 2013

Chamunda Mandir- Shakti Peeth-चामुंडा मंदिर- शक्तिपीठ


हिन्दू श्रद्धालुओं का मुख्य केंद्र और 51 शक्तिपीठों में एक चामुंडा देवी देव भूमि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है. बानेर नदी के तट पर बसा यह मंदिर महाकाली को समर्पित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान शंकर माता सती को अपने कंधे पर उठाकर घूम रहे थे, तब इसी स्थान पर माता का चरण गिर पड़ा था और माता यहां शक्तिपीठ रूप में स्थापित हो गई. चामुंडा देवी मंदिर भगवान शिव और शक्ति का स्थान है. भक्तों में मान्यता है कि यहां पर शतचंडी का पाठ सुनना और सुनाना श्रेष्ठकर है और इसे सुनने और सुनाने वाले का सारा क्लेश दूर हो जाता है.
दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार चण्ड-मुण्ड नामक दो महादैत्य देवी से युद्ध करने आए तो, देवी ने काली का रूप धारण कर उनका वध कर दिया. माता देवी की भृकुटी से उत्पन्न कलिका देवी ने जब चण्ड-मुण्ड के सिर देवी को उपहार स्वरुप भेंट किए तो देवी भगवती ने प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया कि तुमने चण्ड -मुण्ड का वध किया है, अतः आज से तुम संसार में चामुंडा के नाम से विख्यात हो जाओगी. मान्यता है कि इसी कारण भक्तगण देवी के इस स्वरुप को चामुंडा रूप में पूजते हैं.
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Hindu shraddhaluo ka mukhya kendra aur 51 shaktipitho me ek Chamunda Devi dev bhumi Himachal Pradesh ke Kangda zile me sthit hai. Baner Nadi ke tat par basa yah mandir Mahakali ko samarpit hai. Pauranik kathao ke anusar jab Bhagvan Shankar Mata Sati ko apne kandhe par uthakar ghum rahe the, tab isi sthan par mata ka charan gir pada tha aur mata yaha shaktipith roop me sthapit ho gayi. Chamunda Devi Mandir Bhagvan Shiv aur Shakti ka sthan hai. Bhakto me manyata hai ki yaha par Shatchandi ka path karna sunana aur sunaana shreshthkar hai aur ise sunane aur sunane wale ka sara klesh door ho jata hai.
Durga Saptshati ke saptam adhyaay me varnit kathao ke anusar ek bar Chand-Mund namak do mahadaitya Devi se yuddh karne aaye to, Devi ne Kali ka roop dharan kar unka vadh kar diya. Mata Devi ki bhrikuti se utpann Kalika Devi ne jab Chand-Mund ke sir Devi ko uphar swaroop bhent kiye to Devi Bhagvati prasann hokar unhe var diya ki tumne Chand-Mund ka vadh kiya hai, atah aaj se tum sansar me Chamunda ke naam se vikhyat ho jaaogi. Manyata hai ki isi karan bhaktgan Devi ke is swaroop ko Chamunda roop me poojte hain.



शहर :कांगड़ा
राज्य :हिमाचल प्रदेश
क्षेत्र :उत्तर भारत

Tuesday, 17 December 2013

श्री हरसिद्धि देवी 
यहाँ सती की केहुनी गिरी थी इसी से यहाँ देवी की कोई प्रतिमा नहीं , 

प्राचीन काल में चण्ड, प्रचण्ड नामक दो राक्षस थे , जिन्होंने अपने बल - पराक्रम से सारे संसार को कंपा दिया था। एक बार ये दोनों कैलास पर गए . जब ये दोनो
ं अंदर जाने लगे तो द्वार पर नंदीगण ने इन्हे रोका, जिससे क्रोधित होकर इन्होने नंदीगण को घायल कर डाला। जब भगवान् शंकर को यह बात मालुम हुई तो उन्होंने चण्डी का समरण किया . देवी ने तुरंत प्रकट होकर शिवजी की आज्ञा के अनुसार उन राक्षस का वध कर दिया। शिवजी ने देवी की विजय पर प्रसन्न होकर कहा कि अब से संसार में तुम्हारा नाम 'हरसिद्धि' प्रसिद्ध होगा और लोग इसी नाम से तुम्हारी पूजा करेंगे। तब से माता हरसिद्धि उज्जैन के महाकालवन में ही विराजती है 

कहते है सम्राट विक्रमादित्य कि आराध्या देवी यह श्री हरसिद्धि ही थी। वह इन्ही की कृपा से निर्विघ्न शासनकार्य चलाया करते थे। महाराज माताजी के इतने बड़े भक्त थे कि वह हर बारहवे साल सवयं अपने हाथो अपना सिर उनके चरणो पर चढ़ाया करते थे और माता की कृपा से उनका सिर फिर पैदा हो जाता था। इस तरह राजा ने ग्यारह बार पूजा की और बार -२ जीवित हो गए। बारहवी बार जब उन्हों ने पूजा कि तो सिर वापस नहीं हुआ और इस तरह उनका जीवन समाप्त हो गया। आज भी मंदिर के एक कोने में ग्यारह सिन्दूर लगे हुए रुण्ड रखे हुए है। लोगो का कहना है कि ये विक्रम के कटे हुए मुण्ड है। किन्तु इस विषय में कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं पाया जाता। अब कहिये जय माता

Sunday, 17 November 2013

श्रीमद्भागवत महापुराण * : Jai Shree Krishna

( श्रीमद्भागवत महापुराण - १०/३/४ ) - - [ श्री कृष्ण जन्म ] ( कृपया पूरा पढ़ें ) - -संत पुरुष पहले से ही चाहते थे कि असुरों की बढ़ोतरी न होनें पाये l अब उनका मन सहसा प्रसन्नता से भर गया l जिस समय भगवान् के आविर्भाव का अवसर आया , स्वर्ग में देवताओं की दुन्दुभियाँ अपनें आप बज उठीं l 


                   
                                                                                                                श्रीमद्भागवत महापुराण *

Thursday, 14 November 2013

बेटा जो बुलाये माँ को आना चाहिए माइया के चरणो में ठिकाना चाहिए

बेटा जो बुलाये माँ को आना चाहिए माइया के चरणो में ठिकाना चाहिए